Flying bat in a marquee
Barthwal's Around the World

> आशा है आपको यहां आ कर सुखद अनुभव हुआ होगा

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

तुम जो मिल गये हो




तुम मिले तो मेरे हालात बदलते चले गये
यूँ मिलते जुलते अहसास बदलते चले गये,

तन्हाई को मेरी हमसफ़र तुम सा मिल गया
जीने को मुझे सहारा अब तुम सा मिल गया

तुम्हारी झुकी पलकों के आशिक हम बन गये
चलते चलते इस राह मे हमराही हम बन गये

रात की खामोशी हो या हो दिन कि चंचलता
प्यार का अशियाना तुम्हारी बातो से है बनता

लेकर हाथो में हाथ हर पल रहता है तुम्हारा साथ
बन जाती है बिगडी बात जब रहती हो तुम साथ

-प्रतिबिम्ब बडथ्वाल
(पुरानी रचना दुसरे ब्लाग से)


आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

बुधवार, 30 सितंबर 2009

डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल - हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी


डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल ( १३ दिसंबर, १९०१-२४ जुलाई, १९४४) हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी

डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल का जन्म तथा मृ्त्यु दोनो ही पाली ग्राम( पौडी गढवाल),उत्तराखंड, भारत मे हुई. बाल्यकाल मे उन्होने "अंबर" नाम से कविताये लिखी. फिर कहानिया व संपादन ( हिल्मैन नामक अंग्रेजी पत्रिका) किया. डॉ० बड्थ्वाल ने हिन्दी में शोध की परंपरा और गंभीर अधय्यन को एक मजबूत आधार दिया. आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास जी के विचारो को आगे बढाया और हिन्दी आलोचना को आधार दिया. वे उत्तराखंड की ही नही भारत की शान है जिन्हे देश विदेशो मे सम्मान मिला. उत्तराखंड के लोक -साहित्य(गढवाल) के प्रति भी उनका लगाव था.

डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल भारत के प्रथम शोध छात्र है जिन्हे १९३३ के दीक्षांत समारोह में डी.लिट(हिन्दी) से नवाज़ा गया उनके शोध कार्य " हिन्दी काव्य मे निर्गुणवाद" ('द निर्गुण स्कूल आफ हिंदी पोयट्री' - अंग्रेजी शोध पर आधारित जो उन्होने श्री श्यामप्रसाद जी के निर्देशन में किया था) के लिये.

उनका आध्यातमिक रचनाओ की तरफ लगाव था जो उनके अध्यन व शोध कार्य मे झलकता है. उन्होंने संस्कृत, अवधी, ब्रजभाषा, अरबी एवं फारसी के शब्दो और बोली को भी अपने कार्य मे प्रयोग किया. उन्होने संत, सिद्घ, नाथ और भक्ति साहित्य की खोज और विश्लेषण में अपनी रुचि दिखाई और अपने गूढ विचारो के साथ इन पर प्रकाश डाला. भक्ति आन्दोलन (शुक्लजी की मान्यता ) को हिन्दू जाति की निराशा का परिणाम नहीं माना लेकिन उसे भक्ति धारा का विकास माना. उनके शोध और लेख उनके गम्भीर अध्ययन और उनकी दूदृष्टि के भी परिचायक हैं. उन्होने कहा था "भाषा फलती फूलती तो है साहित्य में, अंकुरित होती है बोलचाल में, साधारण बोलचाल पर बोली मँज-सुधरकर साहित्यिक भाषा बन जाती है". वे दार्शनिक वयक्तित्व के धनी, शोधकर्ता,निबंधकार व समीक्षक थे. उनके निबंध/शोधकार्य को आज भी शोध विद्दार्थी प्रयोग करते है. उनके निबंध का मूल भाव उसकी भूमिका या शुरुआत में ही मिल जाता है.

निम्नलिखित कृ्तिया डॉ० बडथ्वाल की सोच, अध्यन व शोध को दर्शाती है.

· रामानन्द की हिन्दी रचनाये ( वारानसी, विक्रम समवत २०१२)

· डॉ० बडथ्वाल के श्रेष्ठ निबंध (. श्री गोबिंद चातक)

· गोरखवाणी(कवि गोरखनाथ की रचनाओ का संकलन व सम्पादन)

· सूरदास जीवन सामग्री

· मकरंद (. डा. भगीरथ मिश्र)

· 'किंग आर्थर एंड नाइट्स आव द राउड टेबल' का हिन्दी अनुवाद(बच्चो के लिये)

· 'कणेरीपाव'

· 'गंगाबाई'

· 'हिंदी साहित्य में उपासना का स्वरूप',

· 'कवि केशवदास'

· 'योग प्रवाह' (. डा. सम्पूर्णानंद)

उनकी बहुत सी रचनाओ मे से कुछ एक पुस्तके "वर्डकेट लाईब्रेरी" के पास सुरक्षित है..हिन्दी साहित्य अकादमी अब भी उनकी पुस्तके प्रकाशित करती है. कबीर,रामानन्द और गोरखवाणी (गोरखबानी, सं. डॉ० पीतांबरदत्त बडथ्वाल, हिंदी साहित्य संमेलन, प्रयाग, द्वि० सं०) पर डॉ० बडथ्वाल ने बहुत कार्य किया और इसे बहुत से साहित्यकारो ने अपने लेखो में और शोध कार्यो में शामिल किया और उनके कहे को पैमाना माना. यह अवश्य ही चिंताजनक है कि सरकार और साहित्यकारो ने उनको वो स्थान नही दिया जिसके वे हकदार थे. प्रयाग विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर डा॰ रानाडे भी कहा कि 'यह केवल हिंदी साहित्य की विवेचना के लिये ही नहीं अपितु रहस्यवाद की दार्शनिक व्याख्या के लिये भी एक महत्त्वपूर्ण देन है.

"नाथ सिद्वो की रचनाये " मे ह्ज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी ने भूमिका मे लिखा है

" नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है. इसमें गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं, क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से ही कर दिया है और वे गोरख बानी नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग). बड़थ्वाल जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में प्रकाशित होगा. दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने इहलोक त्याग दिया. डॉ० बड़थ्वाल की खोज में 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है. डॉ० बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला.तेरहवीं पुस्तक ग्यान चौंतीसा समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी, परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है".

उन्होने बहुत ही कम आयु में इस संसार से विदा ले ली अन्यथा वे हिन्दी में कई और रचनाओ को जन्म देते जो हिन्दी साहित्य को नया आयाम देते. डॉ० संपूर्णानंद ने भी कहा था यदि आयु ने धोखा न दिया होता तो वे और भी गंभीर रचनाओं का सर्जन करते'

उतराखंड सरकार, हिन्दी साहित्य के रहनुमाओ एवम भारत सरकार से आशा है कि वे इनको उचित स्थान दे.

(आप में से यदि कोई डॉ० बड़थ्वाल जी के बारे में जानकारी रखता हो तो जरुर बताये)



आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

सच्चा हिन्दुस्तानी कहलाये


तिरंगा हमारी आन है बान है
हर हिंदुस्तानी की ये शान है

शहीदों की कुर्बानी की अलग कहानी
कुछ गोली खाकर शहीद कहलाये
कुछ फ़ासी के फ़ंदे पर झूल गये
कुछ ने देश के लिये किया समर्पण
कुछ ने किया सब कुछ अपना अर्पण

आज हम हर माने में स्वतंत्र है
लेकिन फ़िर भी बिगड़े सारे तंत्र है
गरीबी अमीरी की खाई बढती जा रही
आंतक की बू हर दिन फैल रही
राजनीति भी खूनी - खेल खेल रही

आजादी के जशन हम हर साल मनाते है
लेकिन मानवता को हर पल भूलते जा रहे है
देश और लोग उन्नति की ओर अग्रसर है
आम जिदगी फ़िर भी इससे बेअसर है
ढूँढते रहते ये सब किसका कसूर है?


आओ आज तिरंगा फ़िर लहराये
अमीरी गरीबी का ये भेद मिटाये
राजनीति से हटकर प्रेम फैलाये
जाति - भाषा का ये जाल हटाये
खुद को सच्चा हिन्दुस्तानी कहलाये।

- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल

(पिछले साल लिखी हुई एक रचना)




आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शुक्रवार, 19 जून 2009

मै नाच रही हूँ……




नाचने दो आज मुझे दिल खोल कर
नाच रही हूँ अपने मे मगन हो कर

नाच रही हूँ तन से और मन से
खुशी को दिखाये दुखो को छिपाये

आज खुशी से पैर जमीं पर नही मेरे
नाचती हूँ तो गम नही चेहरे पर तब मेरे

चेहरा दिखता है भाव दिखते है इसलिये खुश हूँ
अपनो को खुश देख अपने दुख छोड़ मै नाचती हूँ

नाचने दो आज मुझे दिल खोल कर
नाच रही हूँ अपने मे मगन हो कर



आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शुक्रवार, 5 जून 2009

तक़दीर का सारा खेल


कोई तोड़ता पत्थर,
कोई घिसता चन्दन,
कोई बने संत यहाँ,
कोई है यहाँ शैतान
जितने दिखते रंग हमें,
उतने ही दिखते रूप यहाँ
प्रेम - द्वेष के बनते मंजर,
कोई चलाये इन पर खंजर
कोई कहे पैसा हाथ का मैल,
मै कहूँ तक़दीर का सारा खेल





आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

गुरुवार, 4 जून 2009

खिली जब कली



बीज से पौधा, पौधे में कली
कली से फ़ूल, रुप रग निखराया।

मैने देखा, उसने देखा
सबने देखा, फ़िर उसको सरहाया।

उसके रंग, उसके ढग
उसकी इज़्ज़त, सबने ही पहचानी

खुशबू जब फ़ैली, तब हुई नियत मैली
फ़िर किसी ने अलग किया, किसी ने धूमिल किया

कली और फ़ूल , की यही कहानी
मेरी तेरी जुबानी और सबकी जिंदगानी।


आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

रविवार, 31 मई 2009

उनकी नज़र के दीवाने है



उनकी नज़र के दीवाने है

बस दीदार को तरसते है

आँखे बरबस उनको ढूंढती है

वो देखकर भी गुम हो जाती है


तन्हाई उनको पसंद है

मुझे उनका साथ पसंद है

यकीं है हमे कुछ ये भी

दिल में है कुछ उनके भी


छुप कर हमें खोजती है

खोज कर कुछ सोचती है

जाने क्या वो सोचती होगी

ढूढने के बहाने खोजती होगी


ये सफर रुकने न देंगे

यूँ ही हम चलते रहेंगे

ना जाने किस मोड़ पर

वो बन जाए हम सफर


(यह रचना भी मेरे दुसरे ब्लॉग सी ली गई है )


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शनिवार, 30 मई 2009

किसी मोड़ पर ……


किसी मोड़ पर ……

टूटती आस
अटकती सांसे
रुकती गति

बिखरते सपने
रुठते स्वर
सुलगते भाव

मुरझाते अह्सास
तडपते अरमान
उजड़ते आशियाने

किसी मोड़ पर
बन जाते है
अपने हमराही


आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

गुरुवार, 28 मई 2009

जिंदगी का आईना


जिंदगी का आईना
हर वक्त बदलता है
आईने के सामने
बनाते बिगाड़ते चेहरे
कल के चेहरे में
आज का रंग भर देते हैं
कल की पहचान बना देते है

आईना झूठ नहीं कहता
चेहरे का सच हम जानते है
फिर भी कल को छोड़
कल को देखते है
आज की तस्वीर बनाते है
कल को बदलने की चाह में

आइने में आज संवारते है
आईने की सच्चाई
मन में फ़िर भी रहती है
झूठ को कचोटती है
लेकिन सच को छुपाती है
फिर आँखे मूँद सपने सजते है
प्रशन भी आज उठते है
हकीकत किस से छिपा रहे हैं?


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
( यह रचना भी मेरे दुसरे ब्लॉग से ली गई है )

बुधवार, 27 मई 2009

मन मेरा


देखता क्या मन
सोचता क्या मन
कुछ खेलता मन
कुछ झेलता मन

हँसता हुआ मन
रोता हुआ मन
कुछ बोलता मन
प्यार करता मन

सवाल मन में
जबाब मन में
तनाव मन में
लगाव मन में

असहाय सा मन
अकेला सा मन
बुदबुदाता मन
गुनगुनाता मन

मन मेरा ना माने
क्या कहे ना जाने
कोई सीमा नहीं मन की
कहानी ये मेरे मन
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
(यह पंकितया अपने दुसरे ब्लॉग में लिखी थी पहले , सोचा आप तक पहुँचा दू। आशा है पसंद आएँगी। )

सोमवार, 25 मई 2009

वक्त ने हमें सिखाया


वक्त ने हमें सिखाया, जीने का भेद बताया
मुझे ही मुझसे मिलाया, मै कौन मुझे बताया

स्वार्थ – निस्वार्थ का भाव मैने पहचाना
कौन अपना है कौन पराया ये भी जाना

कल और आज क्या, समय को पहचाना
मेरा वजूद क्यो, फ़िर मेरी समझ मे आया

प्रेम-द्वेश की फ़ितरत जानी, अपनों से ही बनी कहानी,
हार–जीत का अन्तर जाना, जीवन-मृत्यु का भेद जाना

वक्त ने हमें सिखाया, जीने का भेद बताया
मुझे ही मुझसे मिलाया, मै कौन मुझे बताया



आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

गुरुवार, 21 मई 2009

आखिर कब तक?




कर्म करता जा
फ़ल की चिंता मत कर
फूल बिछाता जा
चाहे राह में कांटे मिले
आखिर कब तक?

दूसरा गाल आगे करो
जब कोई गाल पर चांटा मारे
प्यार करो उनको
जो नफ़रत से पेश आये
आखिर कब तक?

अतिथि देवो भव:
चाहे तिरस्कार उनसे मिलता रहे
अहिंसा परमो धर्मा:
चाहे नर संहार कोई करता रहे
आखिर कब तक?


कर्म करो हर आस तक जब तक फ़ल मिले
फूल बिछाओ जब तक कांटो से सामना न हो
गाल पर तमाचा जब तक गाल सह सके
प्यार करो जब तक नफ़रत से सामना ना हो
अतिथि का सत्कार जब तक सत्कार मिले
अहिंसा तब तक जब तक बेक़ुसूर ना मरे
(यह मेरी दुसरे ब्लॉग में लिखी गई प्रस्तुति है सोचा आप लोगो तक भी पहुँचा दूँ )

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

परिवर्तन संसार का नियम है



परिवर्तन संसार का नियम है
नियम तोड़ने के लिये ही बनते है
तोड़ना या तोड़ – फ़ोड़ जुर्म है
जुर्म की कोई न कोई सज़ा है
सज़ा जुर्माना हो या फ़िर कैद
कैद में जानवर हो या फ़िर इंसान
इंसान अच्छा हो या बुरा
बुराई का छोड़ दो अब दामन
दामन किसका पकड़े या छोड़े
छोड़ ना देना साथ तुम मेरा
मेरे हो या अपने कैसे पहचाने
पहचान थोड़ी हो या गहरी
गहराई का है क्या कोई पैमाना
पैमाना चाहे अब कुछ परिवर्तन
परिवर्तन संसार का नियम है।

रविवार, 29 मार्च 2009

आपके पूर्वज .....

Hello Barthwalskaise hai aap log। I just read abt us as mentioned below:
बड़थ्वाल आप गौर ब्राहमण के बंसधर है ! 500 साल पूर्ब आप गुजरात से आकर पटटी दांगो में बस गए थे ! आप के पुर्बज चार भाई अब्बल, सब्बल, सूरजमल और मुरारी थे।
So we found 4 pillers of Barthwal generations।do u have any information? Do share any story abt it which might be told by our parents or grand parents।
अपने ख्याल
http://groups.yahoo.com/group/barthwals/
पर अंकित करे या यहाँ या फ़िर
फेसबुक http://www.facebook.com/topic.php?topic=8194&uid=55716830562

डॉ० बड़थ्वाल

डॉ० बड़थ्वाल के बारे में हजारी प्रसाद दिवेदी ने अपनी एक पुस्तक में उल्लेख किया है: डॉ० बड़थ्वाल ( प्रथम डी लिट- हिंदी) ने हिंदी साहित्य में प्रमुख योगदान दिया है।
"नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है। इसमें गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं, क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से ही कर दिया है और वे ‘गोरख बानी’ नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग)। बड़थ्वाल जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में प्रकाशित होगा। दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने इहलोक त्याग दिया। डॉ० बड़थ्वाल की खोज में निम्नलिखित 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है। डॉ० बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला। तेरहवीं पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी, परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है।"

मंगलवार, 24 मार्च 2009

Hi


Pratibimb Bhaiji,
Too many options, too small community.
But this one seems better. Keep it up.
But can we name it as "BARTHWAL" in place of बड़थ्वाल for easy google search!!!!
विजय बड़थ्वाल
PS: Photograph is of my son Parth 'the young' Barthwal।

सोमवार, 23 मार्च 2009

हम तुम


हम काफी वयस्त है। हम अपने दैनिक कार्यो में इतने वयस्त है की शायद एक दूसरे को जानने पहचानने के लिए वक्त का आभाव अपने आप ही हमारे सम्मुख आ जाता है। या फ़िर जानभूजकर स्वयं को अपनो से अलग किए हुए है। कारण कई हो सकते है। समय, परिवार , कार्य या फ़िर स्वयं की उदासीनता जिसमे सव्यं का स्वभाव अहम् भूमिका निभाता है। लेकिन अपनों से जुड़ना ,उनके बारे में जानना और उनसे सम्बन्ध जोड़ना आपके जीवन में एक नया मोड़ ला सकता है। एक दूसरे के आचार विचार जानकर आप जिंदगी को नए ढंग से जीना सीख सकते है। कौन किस तरह से देश, समाज और परिवार में किस तरह से सहयोग करता है या करना चाहता है। यह जानकर भी आप अपने को बदल सकते है या अपने विश्वाश को और मजबूती से जीवन में ढाल सकते है। और अपने विचारो को अपनो तक पहुँचा सकते है।

हम सभी किसी न किसी मोड़ पर हम एक दोस्त बनाते है या फिर कोई रिश्ता जोड़ते है। यदि इस राह में हम अपनों से ही जुड़ जाए तो परिवार सा अनुभव होगा ऐसा मेरा मानना है। इसी प्रयास में सभी बड़थ्वाल लोगो से जुड़ने और जोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ। वयव्साय होने के कारण समय की मजबूरी मेरे साथ भी है लेकिन फ़िर भी चाह अपनों की खींच लाती है यहाँ। शुक्र है की आज के तकीनीकी दुनिया में अपनी इस चाह को बढ़ाने में आसानी हो गई वरना कैसे आप लोगो से जुड़ पाता। अगर आप लोग भी इसी तरह की सोच रखते है तो आए साथ चले और अन्य बड़थ्वाल को भी आम्नत्रित करे इस यात्रा में।

बडो को प्रणाम और बाकी सभी को प्यार

आपका अपना

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शुक्रवार, 16 जनवरी 2009



कश्मीर से कन्याकुमारी को पहचान ले
बंगाल से गुजरात की ताकत जान ले
अपना कर्तव्य अब हम समझ ले
कमजोर नहीं हम दुश्मन अब जान ले

अहिंसा के पुजारी बसते है यहाँ
वीर सेनानी जन्म लेते है यहाँ
अतिथि का आदर करते है यहाँ
दुश्मनों को सबक सिखाते है यहाँ

आंतक यहाँ कोई न फ़ैलाने पाये
बुरी नज़र ना कोई लगने पाये
राजनीति ना हम को बांट पाये
आओ देशहित में हम साथ हो जाये।



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, आबू दाबी

हमारा उद्देश्य

When we dream alone it is only a dream, but when many dream together it is the beginning of a new reality.