कोई तोड़ता पत्थर,
कोई घिसता चन्दन,
कोई बने संत यहाँ,
कोई है यहाँ शैतान
जितने दिखते रंग हमें,
उतने ही दिखते रूप यहाँ
प्रेम - द्वेष के बनते मंजर,
कोई चलाये इन पर खंजर
कोई कहे पैसा हाथ का मैल,
मै कहूँ तक़दीर का सारा खेल
आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
सुन्दर रचना, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने बङथ्वाल जी।
जवाब देंहटाएंप्रीति जी शुक्रिया। आपकी रचनाये भी अति सुन्दर होती है। मै दुसरे ब्लोग मे लिखता हूँ परन्तु बड़थ्वाल लोगो को जोड्ने की कोशिश मे ये ब्लोग बनाया था। लेकिन सभी बड्थ्वाल बहुत वय्स्त रह्ते है। तब सोचा इसे भी सार्वजनिक कर दू। यदि आप भी इस ब्लोग मे सह्योग करना चाह्ती है तो लिखयेगा। धन्यवाद्।
जवाब देंहटाएंनमस्कार बड़थ्वाल जी, मेरा नाम देवेन्द्र प्रसाद बड़थ्वाल है। कृपया अपने इस ब्लॉग में श्री मुकुंद राम देवज्ञ जी (बड़थ्वाल) के विषय में कुछ अवश्य लिखें
जवाब देंहटाएंनमस्कार देवेन्द्र जी ... आप जानकरी मुझे भेज दे जो आपके पास है ... अवश्य इस पर प्रकाश डालूँगा
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