कोई तोड़ता पत्थर,
कोई घिसता चन्दन,
कोई बने संत यहाँ,
कोई है यहाँ शैतान
जितने दिखते रंग हमें,
उतने ही दिखते रूप यहाँ
प्रेम - द्वेष के बनते मंजर,
कोई चलाये इन पर खंजर
कोई कहे पैसा हाथ का मैल,
मै कहूँ तक़दीर का सारा खेल
आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल