(ज्योतिषाचार्य स्व श्री मुकुंद राम बड़थ्वाल “दैवेज्ञ” )
जब भी किसी बड़थ्वाल का नाम सुनता हूँ तो अनायास ही मन
ख़ुशी अनुभव करता है और यदि कोई ऐसा है जिसके कृतित्व व् व्यक्तित्व पर बड़थ्वाल
कुटुंब को गर्व होना चाहिए तो गर्व होता है. हम ही परिचित नहीं तो कैसे उनके
कृतित्व को अन्य लोगो तक पहुंचाए. ऐसे ही एक प्रकांड ज्योतिषविद्ध श्रद्धेय स्व
मुकुंद राम बड़थ्वाल जी के बारे में मुझे अब पता चला. जानकरी मिलने पर जो परिचय
प्राप्त हुआ वह अद्भुत है. ज्योतिष विद्या में अनुसंधान के प्रक्रिया सा विस्तार
दिया है इन्होने. उनके द्वारा ज्योतिष विज्ञानं में जो श्रम और इस साहित्य को दिया गया है शायद
बहुत थोडा ही लोग जानते है अगर कहे की कोई नहीं जानता तो अतिश्योक्ति भी नहीं
होगी. गिने चुने लोग तब और अब तो कोई भी नहीं. हमें अपने इस रत्न की केवल अपनों
में नहीं, केवल भारत में नहीं बल्कि विश्व से पहचान करवानी होगी. बडथ्वाल होने के
नाते हमारे इस बड़थ्वाल कुटुंब का दायित्व भी बन जाता है और उस क्षेत्र ( संस्कृत
संस्थाओं ) का भी जिसका वे प्रतिनिधित्व करते थे. आईए आज उस ज्योतिष साधक,
संस्कृति साधक को संक्षिप्त में, उनके बारे में जानने का प्रयास करते है. उनका
अपने समाज से परिचय करवाते हैं.
प मुकंद राम बडथ्वाल का जन्म ८ नवम्बर १८८७ को उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर
प्रदेश का हिस्सा) के खंड ग्राम में हुआ. पिता श्री रघुबर दत्त बड़थ्वाल ( ज्योतिष,
कर्मकांड व आयुर्वेदाचार्य) तीन पुत्रो में सबसे बड़े पुत्र मुकुंद राम
बड़थ्वाल को ज्योतिष, एक पुत्र को कर्मकांड
व् एक पुत्र को आयुर्वेद की ओर प्रेरित किया. मुकुंद राम जी ने पिताजी द्वारा
ज्योतिष विद्या को बचपन से ही ग्रहण करना शुरू किया. एक लोकोक्ति है न कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं अर्थात किसी व्यक्ति के भविष्य का अनुमान उसके वर्तमान लक्षणों से लगाया जा सकता है. मुकुंद राम जी ने इस लोकोक्ति को चरितार्थ किया जब उन्होंने मात्र ९ साल की उम्र में ग्रह – गणित ज्ञान अर्जित कर लिया.
इनकी शिक्षा घर, लाहौर व् साहित्यिक साधना देव प्रयाग में हुई देव्शाला में हुई. १८ वर्ष की आयु में ही मुकुंद
जी ने जातक – सारम की रचना की थी. ज्योतिर्य गणित व् सूर्यसिद्धांतो का गहन
अध्ययन कर उन्होंने मुकुद –विनोद
सारिणी , मकरंद तति, मुकुंद पद्धिति, प पञ्चांग मन्जूषा, दशा- मन्जरी, सारिणिया
बनाई.
मेरा मानना है की आधुनिक ज्योतिर्विद में इनका नाम प्रमुखता से लिया जाना चाहिए. यह उनके अथाह ज्ञान व् कड़ी मेहनत के साथ शोध गर्भित अन्वेषण शामिल है.. लाहौर में एक ज्योतिष शोध संस्थान द्वारा फलित ज्योतिष के ग्रन्थ संकलन हेतु मुकुंद दैवेज्ञ जी ने अनेकों प्रकाशित व् अप्रकाशित ग्रंथो का अध्ययन किया. यह कोई आसान कार्य नहीं था लेकिन उनकी लगन ने ज्योतिष शास्त्र के सभी अंगो का समन्वय कर ज्योतिस्त्तत्व के नाम से रचा जो प्रकाशित हुआ. इस पुस्तक को छपने में मुंबई से तीन व्यापारी केशवलाल वीरचन्द सेठ, राम्निक्लाल श्यामलाल परोख,बादिलाल मोहनलाल शाह का योगदान रहा. इसका संपादन उनके शिष्य प चक्रधर जोशी. गुरु मुकुन्दराम दैवेग्य जी और शिष्य प चक्रधर जोशी जी की जोड़ी, गुरु - शिष्य परम्परा की सटीक उदाहरण थी उनके इस शिष्य ने ही आचार्य मुकुंद दैवेज्ञ ज्योतिः शोध संश्थान की स्थापना (The Himalayan Astrological Research Institute के अंतर्गत सन १९४६ ई में देवप्रयाग में की थी. इसके अंतर्गत एक नक्षत्र वैधशाला तथा पुस्तकालय भी बनाया बनाया गया.
भट्तोत्प्ल की आर्या- सप्तति
वेंकटेश कृत केतकी – ग्रह गणित
विददाचार्य की पद्धति – कल्पवल्ली
मल्लारी की अश्वारूढ़ि
पंडित पद्दनाभ का लम्पाक-शास्त्र
पंडित परमसुख उपाध्याय का रमल –तंत्र
ऊपर लिखी हुई भट्तोत्प्ल की आर्या- सप्तति तो
कई वर्षो से राजस्थान विश्वविद्यालय की ज्योतिषाचार्य परीक्षाओं में निर्धारित
पाठ्यपुस्तक है. ज्योतिष शास्त्र के विभिन्न पक्षों पर दैवेज्ञ जी ने १२ भावो के
फलित पर संकलन ग्रन्थ लिखे हैं. इनमें से कुछ भावो पर उनके निम्नलिखित ग्रन्थ
उल्लेखनीय हैं और प्रकाशित भी हैं.
अष्टकवर्ग
आयु-निर्णय
इष्टलग्न- निर्णय
प्रसवचिंतामणि व् नष्ट जातक
ज्योतिष के जिज्ञाशूओ के लिए इसके अलावा भी उनके ग्रन्थ है जैसे बाल बोध दीपिका, वृहद/ ज्योतिष शास्त्र प्रवेशिका, वृहद होड़ा चक्र. साथ ही ज्योतिर्गणित सिद्धांत, जातक ताजिक प्रश्न वृष्टि शकुन वस्तु समर्घ-महर्घ पर भी उन्होंने ग्रन्थ लिखे हैं. इनमे से कुछ प्रकाशित कुछ अप्रकाशित है. सभी ग्रंथों को तालिका रूप में प्रस्तुत करूंगा आगे.
ज्योतिष ग्रंथो के अध्ययन के समय ज्योतिष शब्दों के लिए मुकुंद दैवेज्ञ जी को कई शब्दकोषो में ढूँढना पड़ता था. विभिन्न कोश ढूंढते थे. जैसे वैश्नीय कोश की खोज की तो पता लगा की एक तो लन्दन में एक भारत में. किसी तरह उनके शिष्यों ने भारत में उस का कोश का पता लगाया उस पुस्तकालय का सदस्य बनाया. इसलिए साथ साथ उन्होंने ज्योतिष शब्दों को एकत्र करना शुरू किया. इसके फलस्वरूप उनकी सबसे महत्वपूर्ण कृति ज्योतिष शब्दकोष जो की ज्योतिष शास्त्र को एक देन है. सन १९६७ में भारत सर्कार के शिक्षा मंत्रालय की वितीय सहायता द्वारा इसका प्रकाशन हुआ. इस शब्दकोष में गद्य पद्य उपयोगी शब्द, पर्यायवाची शब्द व् अनेकार्थ शब्दों का भी संकलन है. इस शब्दकोष का आमुख महो महोपाध्याय परमेश्वरानंद द्वारा लिखित है.
उनकी विद्वता का और ज्योतिष पांडित्य ज्ञान का एक उदाहरण उनका एक मौलिक ग्रन्थ ज्योतिषतत्वम है जो १९५५ में प्रकाशित हुआ. लगभग १४०० पेजों के इस ग्रन्थ में ७७७५ स्वरचित श्लोक है.
मुकुंद कोष का केवल एक ही भाग प्रकाशित हो पाया. अधिकांश रचनाओं को उन्होंने मुकुंद आश्रम में ही सृजन किया. मुकुंदाश्रम सन १९६० से बनाया गया था. आइये जानते है उनके प्रकाशित व् अप्रकाशित ग्रंथो के नाम:
प्रकाशित
ग्रन्थ
पंचांग मंजूषा : मुंबई से कल्याण प्रेस द्वारा सन
१९२२
आर्य सप्तति: पाण्डुरंग जीवाजी रामचंद्र येशु शेंडगे
मुंबई द्वारा
मुकुंद पद्वति : देवप्रयाग क्षेत्र निवासी श्रीमत
पंडित गोवर्धन प्रसाद भट्ट , पंडित रेवतराम जी व् पंडित माधो प्रसाद शर्मा –
स्व्मूलेन प्रकशित १९८३ में नवल किशोर मुद्राणलय
मुद्रिता बम्बई 1983
दशामन्जरी : मुकुंद प्रकाशन,जयपुर
ज्योतिषशास्त्र प्रवेशिका:
बृहद होरा चक्रम: मेहर चंद लक्ष्मण दास, संस्कृत –
हिंदी ( पुस्तक विक्रेता सैदमिट्ठा बाजार, लाहौर विक्रम संवत १९९३
ज्योतिष रत्नाकर: लाहौर में ( एक भाग ही ही ४०० पन्नो
का)
ज्योतिषतत्त्वं: १९५५ प चक्रधर जोशी
आशुबोध टीका: जयपुर में आचार्य स्वीकृत
ज्योतिष शब्द कोश: १९६७
बृहद ज्योतिष शास्त्र
नष्ट जातकम: रंजन पब्लिकेशन
भाव मन्जरी: रंजन पब्लिकेशन
आयुर्निर्णय: रंजन पब्लिकेशन
अष्टक वर्ग महानिबंध: रंजन पब्लिकेशन
प्रसव चिंतामणि: रंजन पब्लिकेशन
जातक भूषणं: रंजन पब्लिकेशन
वित् एवं कृति प्रबंध
लिंगानुशासन वर्ग
पद्वति कल्पवल्ली
जातक सर
मुकुंद विनोद सारिणी
आयुदार्य संग्रह
मुकुंद विलास सारिणी
एकोद्दिष्ट श्राद्ध पद्वति
मकरन्दतति:
अष्टक वर्ग संग्रह
ज्योति: सार संग्रह
जातक परिजतादी संग्रह
जातकालंकार(टीका)
ताजिक योग संग्रह
मुकुंद योग संग्रह
व्यापार रत्नम
रमल नवरत्नम
जातक सूत्रम
बाल बोध दीपिका
पियूष धरा
मनोरमा
मधुव्रता
कोशानामवली
भूवलय चक्रम
अश्वारूढ़ी
लम्पाक शास्त्रं
प्रश्न दीपिका
स्त्रीजातकम
कोतकीयगृह गणितम
मुकुंदकोश
मुकुन्दस्य प्रतिज्ञेद्वे कोषम ( मुकुंद्कोश) गंगा गंगां च न त्यजेत परिज्ञ को अंतिम समय तक निभाया. खंड ग्राम में मुकुंदाश्रम में नदी किनारे ३० सितम्बर १९७९ मुकंद दैवेज्ञ जी ने अंतिम सांस ली.
उनके लिखित हस्तलिखित ग्रन्थ आज भी बाट जो रहे है सरकार की, किसी प्रकाशक की, किसी ऐसी संस्था की जो संस्कृत में लिखे इन ग्रंथो को अनुवाद करवा कर ज्योतिष के विद्यार्थियों को, शोधकर्ताओं को उपलब्ध हो सके या ज्योतिष में, फलित ज्योतिष पढने वाले प्रयोग करने वाले इसका लाभ उठा सके.
इन सभी जानकारियों हेतु आभारी हूँ उनके पुत्र श्री रमेश बड़थ्वाल जी का, पोती सुश्री सुधा का, पोते श्री शैलेन्द्र बड़थ्वाल जी का व् श्री हर्षवर्धन जी का जिन्होंने आंशिक तौर पर ही सही परन्तु मुझे जानकारी प्रदान की.
प्रकाशित कुछ पुस्तकों ही मुझे पता चल पाया. रंजन पब्लिकेशन ने भी मुझे जानकरी देने से इंकार किया ( उनके पास १० - १२ ग्रन्थ है कुछ ६ या ७ प्रकाशित उसका भी वे ठीक से जानकरी नहीं दे रहे हैं बाकियों का ज्ञात नहीं). यह अत्यंत निराशा का विषय है कि उनका विस्तृत भंडार आज भी बंद तालो में है. परिवार के सदस्य भी असमर्थता जाहिर करते हैं कई कारणों से. लेकिन एक उत्तराखंडी होने के नाते, बड़थ्वाल होने के नाते यह हम सब का भी सामूहिक कर्तव्य बन जाता है कि हम इन ग्रंथो के प्रकाशनार्थ हेतु कोई योजनाबद्ध तरीके से इसमें पहल करें.
अंत में इस महान ज्योतिषाचार्य मुकंद देवैज्ञ जी की
स्मृति में बड़थ्वाल कुटुंब की ओर नमन करता हूँ और विश्वास है आने वाले समय में हम
अवश्य उनके अधूरे कार्य ( अप्रकाशित पुस्तकों को प्रकशित करने का) को पूरा करने का
प्रयास करेंगे.
‘बड़थ्वाल कुटुंब’
एवं
महामन्त्री, हिंदी साहित्य भारती (विदेश)