डॉ० बड़थ्वाल के बारे में हजारी प्रसाद दिवेदी ने अपनी एक पुस्तक में उल्लेख किया है: डॉ० बड़थ्वाल ( प्रथम डी लिट- हिंदी) ने हिंदी साहित्य में प्रमुख योगदान दिया है।
"नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है। इसमें गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं, क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से ही कर दिया है और वे ‘गोरख बानी’ नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग)। बड़थ्वाल जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में प्रकाशित होगा। दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने इहलोक त्याग दिया। डॉ० बड़थ्वाल की खोज में निम्नलिखित 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है। डॉ० बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला। तेरहवीं पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी, परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है।"
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