Flying bat in a marquee
Barthwal's Around the World

> आशा है आपको यहां आ कर सुखद अनुभव हुआ होगा

रविवार, 31 मई 2009

उनकी नज़र के दीवाने है



उनकी नज़र के दीवाने है

बस दीदार को तरसते है

आँखे बरबस उनको ढूंढती है

वो देखकर भी गुम हो जाती है


तन्हाई उनको पसंद है

मुझे उनका साथ पसंद है

यकीं है हमे कुछ ये भी

दिल में है कुछ उनके भी


छुप कर हमें खोजती है

खोज कर कुछ सोचती है

जाने क्या वो सोचती होगी

ढूढने के बहाने खोजती होगी


ये सफर रुकने न देंगे

यूँ ही हम चलते रहेंगे

ना जाने किस मोड़ पर

वो बन जाए हम सफर


(यह रचना भी मेरे दुसरे ब्लॉग सी ली गई है )


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शनिवार, 30 मई 2009

किसी मोड़ पर ……


किसी मोड़ पर ……

टूटती आस
अटकती सांसे
रुकती गति

बिखरते सपने
रुठते स्वर
सुलगते भाव

मुरझाते अह्सास
तडपते अरमान
उजड़ते आशियाने

किसी मोड़ पर
बन जाते है
अपने हमराही


आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

गुरुवार, 28 मई 2009

जिंदगी का आईना


जिंदगी का आईना
हर वक्त बदलता है
आईने के सामने
बनाते बिगाड़ते चेहरे
कल के चेहरे में
आज का रंग भर देते हैं
कल की पहचान बना देते है

आईना झूठ नहीं कहता
चेहरे का सच हम जानते है
फिर भी कल को छोड़
कल को देखते है
आज की तस्वीर बनाते है
कल को बदलने की चाह में

आइने में आज संवारते है
आईने की सच्चाई
मन में फ़िर भी रहती है
झूठ को कचोटती है
लेकिन सच को छुपाती है
फिर आँखे मूँद सपने सजते है
प्रशन भी आज उठते है
हकीकत किस से छिपा रहे हैं?


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
( यह रचना भी मेरे दुसरे ब्लॉग से ली गई है )

बुधवार, 27 मई 2009

मन मेरा


देखता क्या मन
सोचता क्या मन
कुछ खेलता मन
कुछ झेलता मन

हँसता हुआ मन
रोता हुआ मन
कुछ बोलता मन
प्यार करता मन

सवाल मन में
जबाब मन में
तनाव मन में
लगाव मन में

असहाय सा मन
अकेला सा मन
बुदबुदाता मन
गुनगुनाता मन

मन मेरा ना माने
क्या कहे ना जाने
कोई सीमा नहीं मन की
कहानी ये मेरे मन
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
(यह पंकितया अपने दुसरे ब्लॉग में लिखी थी पहले , सोचा आप तक पहुँचा दू। आशा है पसंद आएँगी। )

सोमवार, 25 मई 2009

वक्त ने हमें सिखाया


वक्त ने हमें सिखाया, जीने का भेद बताया
मुझे ही मुझसे मिलाया, मै कौन मुझे बताया

स्वार्थ – निस्वार्थ का भाव मैने पहचाना
कौन अपना है कौन पराया ये भी जाना

कल और आज क्या, समय को पहचाना
मेरा वजूद क्यो, फ़िर मेरी समझ मे आया

प्रेम-द्वेश की फ़ितरत जानी, अपनों से ही बनी कहानी,
हार–जीत का अन्तर जाना, जीवन-मृत्यु का भेद जाना

वक्त ने हमें सिखाया, जीने का भेद बताया
मुझे ही मुझसे मिलाया, मै कौन मुझे बताया



आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

गुरुवार, 21 मई 2009

आखिर कब तक?




कर्म करता जा
फ़ल की चिंता मत कर
फूल बिछाता जा
चाहे राह में कांटे मिले
आखिर कब तक?

दूसरा गाल आगे करो
जब कोई गाल पर चांटा मारे
प्यार करो उनको
जो नफ़रत से पेश आये
आखिर कब तक?

अतिथि देवो भव:
चाहे तिरस्कार उनसे मिलता रहे
अहिंसा परमो धर्मा:
चाहे नर संहार कोई करता रहे
आखिर कब तक?


कर्म करो हर आस तक जब तक फ़ल मिले
फूल बिछाओ जब तक कांटो से सामना न हो
गाल पर तमाचा जब तक गाल सह सके
प्यार करो जब तक नफ़रत से सामना ना हो
अतिथि का सत्कार जब तक सत्कार मिले
अहिंसा तब तक जब तक बेक़ुसूर ना मरे
(यह मेरी दुसरे ब्लॉग में लिखी गई प्रस्तुति है सोचा आप लोगो तक भी पहुँचा दूँ )

हमारा उद्देश्य

When we dream alone it is only a dream, but when many dream together it is the beginning of a new reality.