कर्म करता जा
फ़ल की चिंता मत कर
फूल बिछाता जा
चाहे राह में कांटे मिले
आखिर कब तक?
दूसरा गाल आगे करो
जब कोई गाल पर चांटा मारे
प्यार करो उनको
जो नफ़रत से पेश आये
आखिर कब तक?
अतिथि देवो भव:
चाहे तिरस्कार उनसे मिलता रहे
अहिंसा परमो धर्मा:
चाहे नर संहार कोई करता रहे
आखिर कब तक?
कर्म करो हर आस तक जब तक फ़ल मिले
फूल बिछाओ जब तक कांटो से सामना न हो
गाल पर तमाचा जब तक गाल सह सके
प्यार करो जब तक नफ़रत से सामना ना हो
अतिथि का सत्कार जब तक सत्कार मिले
अहिंसा तब तक जब तक बेक़ुसूर ना मरे
(यह मेरी दुसरे ब्लॉग में लिखी गई प्रस्तुति है सोचा आप लोगो तक भी पहुँचा दूँ )
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