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ये ब्लोग आपका है। अपने विचार बेझिझक प्रस्तुत किजिये!!! एक दूसरे बड़थ्वाल को पढ़िये और जानिये। हम किसी से कम नहीं……………… आईये साथ चले। Hindi or English - any language can be used to share your thoughts even Garhwali
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मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009
तुम जो मिल गये हो
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बुधवार, 30 सितंबर 2009
डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल - हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी
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डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल ( १३ दिसंबर, १९०१-२४ जुलाई, १९४४) हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी
डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल का जन्म तथा मृ्त्यु दोनो ही पाली ग्राम( पौडी गढवाल),उत्तराखंड, भारत मे हुई. बाल्यकाल मे उन्होने "अंबर" नाम से कविताये लिखी. फिर कहानिया व संपादन ( हिल्मैन नामक अंग्रेजी पत्रिका) किया. डॉ० बड्थ्वाल ने हिन्दी में शोध की परंपरा और गंभीर अधय्यन को एक मजबूत आधार दिया. आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास जी के विचारो को आगे बढाया और हिन्दी आलोचना को आधार दिया. वे उत्तराखंड की ही नही भारत की शान है जिन्हे देश विदेशो मे सम्मान मिला. उत्तराखंड के लोक -साहित्य(गढवाल) के प्रति भी उनका लगाव था.
डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल भारत के प्रथम शोध छात्र है जिन्हे १९३३ के दीक्षांत समारोह में डी.लिट(हिन्दी) से नवाज़ा गया उनके शोध कार्य " हिन्दी काव्य मे निर्गुणवाद" ('द निर्गुण स्कूल आफ हिंदी पोयट्री' - अंग्रेजी शोध पर आधारित जो उन्होने श्री श्यामप्रसाद जी के निर्देशन में किया था) के लिये.
उनका आध्यातमिक रचनाओ की तरफ लगाव था जो उनके अध्यन व शोध कार्य मे झलकता है. उन्होंने संस्कृत, अवधी, ब्रजभाषा, अरबी एवं फारसी के शब्दो और बोली को भी अपने कार्य मे प्रयोग किया. उन्होने संत, सिद्घ, नाथ और भक्ति साहित्य की खोज और विश्लेषण में अपनी रुचि दिखाई और अपने गूढ विचारो के साथ इन पर प्रकाश डाला. भक्ति आन्दोलन (शुक्लजी की मान्यता ) को हिन्दू जाति की निराशा का परिणाम नहीं माना लेकिन उसे भक्ति धारा का विकास माना. उनके शोध और लेख उनके गम्भीर अध्ययन और उनकी दूर दृष्टि के भी परिचायक हैं. उन्होने कहा था "भाषा फलती फूलती तो है साहित्य में, अंकुरित होती है बोलचाल में, साधारण बोलचाल पर बोली मँज-सुधरकर साहित्यिक भाषा बन जाती है". वे दार्शनिक वयक्तित्व के धनी, शोधकर्ता,निबंधकार व समीक्षक थे. उनके निबंध/शोधकार्य को आज भी शोध विद्दार्थी प्रयोग करते है. उनके निबंध का मूल भाव उसकी भूमिका या शुरुआत में ही मिल जाता है.
निम्नलिखित कृ्तिया डॉ० बडथ्वाल की सोच, अध्यन व शोध को दर्शाती है.
· रामानन्द की हिन्दी रचनाये ( वारानसी, विक्रम समवत २०१२)
· डॉ० बडथ्वाल के श्रेष्ठ निबंध (स. श्री गोबिंद चातक)
· गोरखवाणी(कवि गोरखनाथ की रचनाओ का संकलन व सम्पादन)
· सूरदास जीवन सामग्री
· मकरंद (स. डा. भगीरथ मिश्र)
· 'किंग आर्थर एंड नाइट्स आव द राउड टेबल' का हिन्दी अनुवाद(बच्चो के लिये)
· 'कणेरीपाव'
· 'गंगाबाई'
· 'हिंदी साहित्य में उपासना का स्वरूप',
· 'कवि केशवदास'
· 'योग प्रवाह' (स. डा. सम्पूर्णानंद)
उनकी बहुत सी रचनाओ मे से कुछ एक पुस्तके "वर्डकेट लाईब्रेरी" के पास सुरक्षित है..हिन्दी साहित्य अकादमी अब भी उनकी पुस्तके प्रकाशित करती है. कबीर,रामानन्द और गोरखवाणी (गोरखबानी, सं. डॉ० पीतांबरदत्त बडथ्वाल, हिंदी साहित्य संमेलन, प्रयाग, द्वि० सं०) पर डॉ० बडथ्वाल ने बहुत कार्य किया और इसे बहुत से साहित्यकारो ने अपने लेखो में और शोध कार्यो में शामिल किया और उनके कहे को पैमाना माना. यह अवश्य ही चिंताजनक है कि सरकार और साहित्यकारो ने उनको वो स्थान नही दिया जिसके वे हकदार थे. प्रयाग विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर डा॰ रानाडे भी कहा कि 'यह केवल हिंदी साहित्य की विवेचना के लिये ही नहीं अपितु रहस्यवाद की दार्शनिक व्याख्या के लिये भी एक महत्त्वपूर्ण देन है.
"नाथ सिद्वो की रचनाये " मे ह्ज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी ने भूमिका मे लिखा है
" नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है. इसमें गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं, क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से ही कर दिया है और वे ‘गोरख बानी’ नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग). बड़थ्वाल जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में प्रकाशित होगा. दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने इहलोक त्याग दिया. डॉ० बड़थ्वाल की खोज में 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है. डॉ० बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला.तेरहवीं पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी, परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है".
उन्होने बहुत ही कम आयु में इस संसार से विदा ले ली अन्यथा वे हिन्दी में कई और रचनाओ को जन्म देते जो हिन्दी साहित्य को नया आयाम देते. डॉ० संपूर्णानंद ने भी कहा था यदि आयु ने धोखा न दिया होता तो वे और भी गंभीर रचनाओं का सर्जन करते'
उतराखंड सरकार, हिन्दी साहित्य के रहनुमाओ एवम भारत सरकार से आशा है कि वे इनको उचित स्थान दे.
(आप में से यदि कोई डॉ० बड़थ्वाल जी के बारे में जानकारी रखता हो तो जरुर बताये)
शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
सच्चा हिन्दुस्तानी कहलाये
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शुक्रवार, 19 जून 2009
मै नाच रही हूँ……
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नाचने दो आज मुझे दिल खोल कर
नाच रही हूँ अपने मे मगन हो कर
नाच रही हूँ तन से और मन से
खुशी को दिखाये दुखो को छिपाये
आज खुशी से पैर जमीं पर नही मेरे
नाचती हूँ तो गम नही चेहरे पर तब मेरे
चेहरा दिखता है भाव दिखते है इसलिये खुश हूँ
अपनो को खुश देख अपने दुख छोड़ मै नाचती हूँ
नाचने दो आज मुझे दिल खोल कर
नाच रही हूँ अपने मे मगन हो कर
शुक्रवार, 5 जून 2009
तक़दीर का सारा खेल
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कोई तोड़ता पत्थर,
कोई घिसता चन्दन,
कोई बने संत यहाँ,
कोई है यहाँ शैतान
जितने दिखते रंग हमें,
उतने ही दिखते रूप यहाँ
प्रेम - द्वेष के बनते मंजर,
कोई चलाये इन पर खंजर
कोई कहे पैसा हाथ का मैल,
मै कहूँ तक़दीर का सारा खेल
आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
गुरुवार, 4 जून 2009
खिली जब कली
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कली से फ़ूल, रुप रग निखराया।
मैने देखा, उसने देखा
सबने देखा, फ़िर उसको सरहाया।
उसके रंग, उसके ढग
उसकी इज़्ज़त, सबने ही पहचानी
खुशबू जब फ़ैली, तब हुई नियत मैली
फ़िर किसी ने अलग किया, किसी ने धूमिल किया
कली और फ़ूल , की यही कहानी
मेरी तेरी जुबानी और सबकी जिंदगानी।
रविवार, 31 मई 2009
उनकी नज़र के दीवाने है
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शनिवार, 30 मई 2009
किसी मोड़ पर ……
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टूटती आस
अटकती सांसे
रुकती गति
बिखरते सपने
रुठते स्वर
सुलगते भाव
मुरझाते अह्सास
तडपते अरमान
उजड़ते आशियाने
किसी मोड़ पर
बन जाते है
अपने हमराही
गुरुवार, 28 मई 2009
जिंदगी का आईना
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आईने के सामने
बनाते बिगाड़ते चेहरे
कल के चेहरे में
आज का रंग भर देते हैं
कल की पहचान बना देते है
आईना झूठ नहीं कहता
चेहरे का सच हम जानते है
फिर भी कल को छोड़
कल को देखते है
आज की तस्वीर बनाते है
कल को बदलने की चाह में
आइने में आज संवारते है
आईने की सच्चाई
मन में फ़िर भी रहती है
झूठ को कचोटती है
लेकिन सच को छुपाती है
फिर आँखे मूँद सपने सजते है
प्रशन भी आज उठते है
हकीकत किस से छिपा रहे हैं?
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
( यह रचना भी मेरे दुसरे ब्लॉग से ली गई है )
बुधवार, 27 मई 2009
मन मेरा
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सोचता क्या मन
कुछ खेलता मन
कुछ झेलता मन
हँसता हुआ मन
रोता हुआ मन
कुछ बोलता मन
प्यार करता मन
सवाल मन में
जबाब मन में
तनाव मन में
लगाव मन में
असहाय सा मन
अकेला सा मन
बुदबुदाता मन
गुनगुनाता मन
मन मेरा ना माने
क्या कहे ना जाने
कोई सीमा नहीं मन की
कहानी ये मेरे मन
सोमवार, 25 मई 2009
वक्त ने हमें सिखाया
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मुझे ही मुझसे मिलाया, मै कौन मुझे बताया
स्वार्थ – निस्वार्थ का भाव मैने पहचाना
कौन अपना है कौन पराया ये भी जाना
कल और आज क्या, समय को पहचाना
मेरा वजूद क्यो, फ़िर मेरी समझ मे आया
प्रेम-द्वेश की फ़ितरत जानी, अपनों से ही बनी कहानी,
हार–जीत का अन्तर जाना, जीवन-मृत्यु का भेद जाना
वक्त ने हमें सिखाया, जीने का भेद बताया
मुझे ही मुझसे मिलाया, मै कौन मुझे बताया
गुरुवार, 21 मई 2009
आखिर कब तक?
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कर्म करता जा
फ़ल की चिंता मत कर
फूल बिछाता जा
चाहे राह में कांटे मिले
आखिर कब तक?
दूसरा गाल आगे करो
जब कोई गाल पर चांटा मारे
प्यार करो उनको
जो नफ़रत से पेश आये
आखिर कब तक?
अतिथि देवो भव:
चाहे तिरस्कार उनसे मिलता रहे
अहिंसा परमो धर्मा:
चाहे नर संहार कोई करता रहे
आखिर कब तक?
कर्म करो हर आस तक जब तक फ़ल मिले
फूल बिछाओ जब तक कांटो से सामना न हो
गाल पर तमाचा जब तक गाल सह सके
प्यार करो जब तक नफ़रत से सामना ना हो
अतिथि का सत्कार जब तक सत्कार मिले
अहिंसा तब तक जब तक बेक़ुसूर ना मरे
बुधवार, 22 अप्रैल 2009
परिवर्तन संसार का नियम है
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परिवर्तन संसार का नियम है
नियम तोड़ने के लिये ही बनते है
तोड़ना या तोड़ – फ़ोड़ जुर्म है
जुर्म की कोई न कोई सज़ा है
सज़ा जुर्माना हो या फ़िर कैद
कैद में जानवर हो या फ़िर इंसान
इंसान अच्छा हो या बुरा
बुराई का छोड़ दो अब दामन
दामन किसका पकड़े या छोड़े
छोड़ ना देना साथ तुम मेरा
मेरे हो या अपने कैसे पहचाने
पहचान थोड़ी हो या गहरी
गहराई का है क्या कोई पैमाना
पैमाना चाहे अब कुछ परिवर्तन
परिवर्तन संसार का नियम है।
रविवार, 29 मार्च 2009
आपके पूर्वज .....
बड़थ्वाल आप गौर ब्राहमण के बंसधर है ! 500 साल पूर्ब आप गुजरात से आकर पटटी दांगो में बस गए थे ! आप के पुर्बज चार भाई अब्बल, सब्बल, सूरजमल और मुरारी थे।
So we found 4 pillers of Barthwal generations।do u have any information? Do share any story abt it which might be told by our parents or grand parents।
अपने ख्याल
http://groups.yahoo.com/group/barthwals/
पर अंकित करे या यहाँ या फ़िर
फेसबुक http://www.facebook.com/topic.php?topic=8194&uid=55716830562
डॉ० बड़थ्वाल
"नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है। इसमें गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं, क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से ही कर दिया है और वे ‘गोरख बानी’ नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग)। बड़थ्वाल जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में प्रकाशित होगा। दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने इहलोक त्याग दिया। डॉ० बड़थ्वाल की खोज में निम्नलिखित 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है। डॉ० बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला। तेरहवीं पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी, परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है।"
मंगलवार, 24 मार्च 2009
सोमवार, 23 मार्च 2009
हम तुम
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शुक्रवार, 16 जनवरी 2009
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कश्मीर से कन्याकुमारी को पहचान ले
बंगाल से गुजरात की ताकत जान ले
अपना कर्तव्य अब हम समझ ले
कमजोर नहीं हम दुश्मन अब जान ले
अहिंसा के पुजारी बसते है यहाँ
वीर सेनानी जन्म लेते है यहाँ
अतिथि का आदर करते है यहाँ
दुश्मनों को सबक सिखाते है यहाँ
आंतक यहाँ कोई न फ़ैलाने पाये
बुरी नज़र ना कोई लगने पाये
राजनीति ना हम को बांट पाये
आओ देशहित में हम साथ हो जाये।
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, आबू दाबी