Hello Barthwalskaise hai aap log। I just read abt us as mentioned below:
बड़थ्वाल आप गौर ब्राहमण के बंसधर है ! 500 साल पूर्ब आप गुजरात से आकर पटटी दांगो में बस गए थे ! आप के पुर्बज चार भाई अब्बल, सब्बल, सूरजमल और मुरारी थे।
So we found 4 pillers of Barthwal generations।do u have any information? Do share any story abt it which might be told by our parents or grand parents।
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रविवार, 29 मार्च 2009
डॉ० बड़थ्वाल
डॉ० बड़थ्वाल के बारे में हजारी प्रसाद दिवेदी ने अपनी एक पुस्तक में उल्लेख किया है: डॉ० बड़थ्वाल ( प्रथम डी लिट- हिंदी) ने हिंदी साहित्य में प्रमुख योगदान दिया है।
"नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है। इसमें गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं, क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से ही कर दिया है और वे ‘गोरख बानी’ नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग)। बड़थ्वाल जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में प्रकाशित होगा। दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने इहलोक त्याग दिया। डॉ० बड़थ्वाल की खोज में निम्नलिखित 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है। डॉ० बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला। तेरहवीं पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी, परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है।"
"नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है। इसमें गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं, क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से ही कर दिया है और वे ‘गोरख बानी’ नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग)। बड़थ्वाल जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में प्रकाशित होगा। दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने इहलोक त्याग दिया। डॉ० बड़थ्वाल की खोज में निम्नलिखित 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है। डॉ० बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला। तेरहवीं पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी, परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है।"
मंगलवार, 24 मार्च 2009
सोमवार, 23 मार्च 2009
हम तुम
हम काफी वयस्त है। हम अपने दैनिक कार्यो में इतने वयस्त है की शायद एक दूसरे को जानने पहचानने के लिए वक्त का आभाव अपने आप ही हमारे सम्मुख आ जाता है। या फ़िर जानभूजकर स्वयं को अपनो से अलग किए हुए है। कारण कई हो सकते है। समय, परिवार , कार्य या फ़िर स्वयं की उदासीनता जिसमे सव्यं का स्वभाव अहम् भूमिका निभाता है। लेकिन अपनों से जुड़ना ,उनके बारे में जानना और उनसे सम्बन्ध जोड़ना आपके जीवन में एक नया मोड़ ला सकता है। एक दूसरे के आचार विचार जानकर आप जिंदगी को नए ढंग से जीना सीख सकते है। कौन किस तरह से देश, समाज और परिवार में किस तरह से सहयोग करता है या करना चाहता है। यह जानकर भी आप अपने को बदल सकते है या अपने विश्वाश को और मजबूती से जीवन में ढाल सकते है। और अपने विचारो को अपनो तक पहुँचा सकते है।
हम सभी किसी न किसी मोड़ पर हम एक दोस्त बनाते है या फिर कोई रिश्ता जोड़ते है। यदि इस राह में हम अपनों से ही जुड़ जाए तो परिवार सा अनुभव होगा ऐसा मेरा मानना है। इसी प्रयास में सभी बड़थ्वाल लोगो से जुड़ने और जोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ। वयव्साय होने के कारण समय की मजबूरी मेरे साथ भी है लेकिन फ़िर भी चाह अपनों की खींच लाती है यहाँ। शुक्र है की आज के तकीनीकी दुनिया में अपनी इस चाह को बढ़ाने में आसानी हो गई वरना कैसे आप लोगो से जुड़ पाता। अगर आप लोग भी इसी तरह की सोच रखते है तो आए साथ चले और अन्य बड़थ्वाल को भी आम्नत्रित करे इस यात्रा में।
बडो को प्रणाम और बाकी सभी को प्यार
आपका अपना
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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