जीवन पथ में चलते-चलते
हर एक ढूँढे रास्ते अपने-अपने
दौड़ती जिंदगी और भागते लोग
कहाँ से कहाँ पहुंचे गये हम लोग
सबका जीने का अलग है ढंग
दुनिया के साथ बदला है रंग
दूर हुये हम कहीं यूँ अपनों से
जोड़ लिये रिश्ते कुछ दूसरो से
काश कुछ इस तरह हो जाता
फ़िर रिश्ता हमारा जुड़ जाता।
आओ हम फ़िर आज साथ चले
कल को छोड़ कल कि ओर चले
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
हर एक ढूँढे रास्ते अपने-अपने
दौड़ती जिंदगी और भागते लोग
कहाँ से कहाँ पहुंचे गये हम लोग
सबका जीने का अलग है ढंग
दुनिया के साथ बदला है रंग
दूर हुये हम कहीं यूँ अपनों से
जोड़ लिये रिश्ते कुछ दूसरो से
काश कुछ इस तरह हो जाता
फ़िर रिश्ता हमारा जुड़ जाता।
आओ हम फ़िर आज साथ चले
कल को छोड़ कल कि ओर चले
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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अमित के. सागर
(उल्टा तीर)