पर्यावरण प्रेमी श्री रामप्रसाद बडथ्वाल – एक परिचय
१२ मार्च १९४४ को जन्मे श्री रामप्रसाद बड़थ्वाल – एक पर्यावरण प्रेमी जिन्होंने अधिकतम समय पर्यावरण को समर्पित किया है. पिछले कई वर्षो से वे पर्यावरण के पर्याय है. बिना नाम की लालसा लिए वे हजारो की तादाद में वृक्षारोपण कर प्रकृति से प्रेम व् पर्यावरण सरंक्षण का सन्देश को लोगो तक पहुंचा रहे है.
फलपट्टी के नाम से मशहूर कांडी खंड गाँव में स्व श्री रघुबर दत्त के परिवार में तीन पुत्र श्रद्धेय मुकंद राम बड़थ्वाल देवेज्ञ, श्री उरमिदत्त और श्री राधाकृष्ण है. प्रकृति प्रेमी रामप्रसाद जी राधाकृष्ण जी के पुत्र है.
परिवार में स्व श्री देवेज्ञ जी सभी के प्रेरणा श्रोत रहे है और रामप्रसाद जी ने भी सोचा कि मैं भी कुछ ऐसा कार्य करूं जिससे हम राज्य के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभा सके. वर्ष १९७२ में गढ़वाल से पलायन की शुरुआत हो चुकी थी. उनकी माता जी के निधन के उपरांत उनके खेत खलिहान सब खाली और सूखे – गढ़वाली भाषा में जिसे “बांज/बजर पोड गीन” बुल्दीन. तब इन्होने वृक्षारोपण की बात सोची. अपने चचेरे भाई महिमानंद के साथ मिलकर कांडी (गंगा किनारे के क्षेत्र) में दिवाल बंदी कर 300 गड्ढे खोदकर उसमे कलजी नीम्बू के पेड़ लगाये. इस सफल प्रयोग से वे खुश भी हुए और मन ही मन निश्चय भी किया वे इसे अपना मिशन भी बनायेंगे. उनकी प्रेरणा से कई लोगो ने इस पर काम कानर शुरू किया. अध्यापक सत्याप्रस्द बड़थ्वाल ने भी इसी प्रेरणा से लेकर गाँव में आम केले अंगूर कटहल बांज आदि के सैकड़ो पेड़ लगाये. कुछ समय तक ही वे यह कार्य कर पाए. ( अभी इस जगह पर उनके भतीजे विनोद गेस्ट हाउस चलाते है )
रोजगार की तलाश के लिए वे मुंबई भी गए. यहाँ उन्होंने टैक्सी चलाई, वर्कशॉप में काम किया. और वहां से उन्हें ओमान जाने का मौका मिला. जिसमे वे एक साल तक ड्राइवर का कार्य करते रहे. इसके साथ ही उन्होंने अरबी बोलना सीखा और सेल्समेन की नौकरी करने लगे. लेकिन पेड़ो सा उनका प्रेम यहाँ भी उन्हें रोक नहीं पाया. रेगिस्तान में अपने घर के आंगन में बकरी की लीद से रेतीली भूमि को उर्वरक बनाकर भिन्डी, मिर्च बैंगन इत्यादि सब्जियां उगाने लगे. इसे देख वहां के ओमानी अचम्भित हुए. उन लोगो ने उन्हें आग्रह किया कि वे उनके घरो में भी इसी तरह के पेड़ चाहते है. रामप्रसाद जी ने उनके घरो में जाकर खेती तैयार करना सिखाया. तब लोगो ने वहां भी नीम्बू, बेर, अमरुद व् आम के बगीचे लगाये. रामप्रसाद जी ने वहां ओमानियो को हरियाली और वृक्षारोपण का सन्देश दिया.
रामप्रसाद जी १९९५ में ओमान से स्वदेश लौटे. उन्होंने अब वृक्षरोपण को अपना लक्ष्य बना लिया. ऋषिकेश में उनके घर के आस व् अन्य क्षेत्रो में पर्यावरण सरंक्ष्ण के लिए पौधारोपण को प्रमुख मान कर लोगो को सन्देश देना शुरू किया. जहाँ कहीं उन्हें स्थान दिखाई देता वे पेड़ लगा देते. अनजान लोगो के घरो में भी पेड़ लगा आते थे. अपनी जेब के खर्चे से बरसत में वे अधिक पेड़ लगते थे. देखते देखते वे समाज में ‘ग्रीनमैन’ नाम से चर्चित हो गए.निजी खर्च पर फलदार पौधे लगाना और लोगो में बाँटना ही उनका कर्म बन गया. वे जब भी अपनों के या रिश्तेदारों के यहाँ जाते तो पौधा लेकर ही जाते और उन्हें पर्यावरण सरंक्षण का सन्देश देते.
वृक्षारोपण के कई अभियानो की शुरआत इन्होने की है. कई संस्थाओ व् विद्यालयों के लोग इनको वृक्षरोपण व् पर्यावरण सरंक्षण के कार्यक्रम में बुलाते है. कई सम्मान कई संस्थाओ द्वारा इन्हें प्राप्त है. हर वर्ष इसके लिए वे अपना लक्ष्य निर्धारित करते थे. पर्यावरण संतुलन के लिए वे मानते है की वृक्षों का संरक्षण आवश्यक है.
कुछ वर्ष पूर्व एक सडक दुर्घटना में रामप्रसाद जी घायल हो गए थे जिस कारण पाँव की चोट उन्हें आज चलने फिरने में दिक्कत करती है. वो घर - घर जाने में असमर्थ है पर लोग उन्हें पहचानते है और घर से ही पौधे ले जाते हैं. उनके इस सेवा भाव से खुश होर्टीकल्चर विभाग वाले भी अब पौधे इनके यहाँ छोड़ जाते है और लोग इनके घरो से पौधे ले जाते हैं.
वृक्षमित्र बडथ्वाल जी मानते है कि वनों के प्रति उपेक्षात्मक व्यवहार ही प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी का कारण है. आज जो प्रकृति में बदलाब देखने को मिला रहा है वह मनुष्य हस्तक्षेप के कारण है. पर्यावरण की स्वस्थता के लिए पौधों का सरंक्षण व् संवर्धन वे अनिवार्य समझते है.
प्रकृति प्रेमी / वृक्ष मित्र श्री रामप्रसाद जी को बड़थ्वाल कुटुंब के सदस्य उनके इन प्रयासों के लिए हार्दिक बधाई व् शुभकामनाये देते है. आशा है आपसे प्रेरित होकर और भी इस अभियान को चलाएंगे व् पर्यावरण सरंक्षण द्वारा प्रकृति का संतुलन बनाने में अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे – शुभम
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
( श्री रामप्रसाद बडथ्वाल जी से बातचीत व् हेमलता बहन द्वारा दी जानकरी पर आधारित )
इस लेख में काफी कुछ बाते सच्चाई से परे है जहां तक मेंने गांव में पता किया इन्होंने गांव में एसा कुछ नहीं किया था हाँ गडडे जरूर खोदे थे परन्तु वह सरकारी योजना के तहत पूरे गांव काडी व खण्ड में सभी परिवारों के खेतों में खोदे गये थे
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