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गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

श्री गदाधर बड़थ्वाल जी - एक परिचय


(३१ दिसम्बर १९१५ - २८ अगस्त २००८ )

(३१ दिसम्बर १९१५ - २८ अगस्त २००८ )

उत्तराखंड के पौड़ी जिले  में कंडोलिया के निकट 'बुडोली' गाँव में ३१ दिसम्बर १९१५ को जन्मे श्री गदाधर बड़थ्वाल जी साधु, सात्त्विक, पूर्णतः आध्यात्मिक वृत्ति के मित्भुक्, सहज और नेक व्यक्ति थे.

श्री गदाधर जी के माता-पिता अल्पायु में चल बसे. उनकी फूफू ने उनका लालन-पालन किया. समय उनके साथ न था और जल्द ही फूफू भी उन्हें छोड़कर चल बसीं. गरीबी इतनी थी कि संस्कार के लिए साधन न होने पर श्रीनगर के निकट गंगा में ही उन्हें विसर्जित करना पड़ा.

वे बाल्यकाल से कर्मठ, जुझारू व खुद्दार थे। इसका अंदाजा इस एक घटना से लगाया जा सकता है. जब गांव में पेयजल टैंक की मरम्मत के लिए सीमेंट आदि मंगवाने के लिए दुगड्डा जाने को कोई तैयार नहीं था तो वे अकेले ही (करीब 25 मील एक ओर) पैदल चल पड़े. उन दिनों यही चलन था, और रात तक लौट भी आए. इस साहसिक कार्य के लिए प्रशासन ने उन्हें टैंक चालू होने के समारोह में शील्ड से सम्मानित किया था.

आरंभिक शिक्षा से वंचित श्री गदाधर ने अपने जुझारू व्यक्तित्व व् कुछ करने के हौसले से ज्योतिष का अनौपचारिक किंतु प्रकांड ज्ञान अर्जित कर ख्याति पाई. जन्मपत्री की सटीक विवेचना तथा भविष्यवाणियां सही उतरने पर उनके अनेक शिष्य और भक्त हो गए थे.

करीब ३५ वर्ष की आयु में, उच्च चरित्र के प0 गदाधर ने अन्न को तिलांजलि दे दी. उसके पश्चात् उनका अतिसीमित दैनिक आहार सिर्फ दो-ढ़ाई सौ ग्राम उबली पालक या अन्य पत्तेदार सब्जी, थोड़ा दूध या कोई एक फल ही रहा. अपने जीवन काल मे कभी भी औषधि का प्रयोग नहीं किया था, यहाँ तक कि सर्प दंश के बावजूद भी वह स्वस्थ रहे. इसका एक मात्र कारण उनका ४२ साल तक नमक़ का सेवन न करना था.

अंतकाल तक स्वस्थ रहना पोषण विज्ञानियों के लिए अवश्य ही कौतूहल का विषय होगा. उनकी आवश्यकताएं अंत तक नाम मात्र ही थीं. धोती, दो जूट के लंगोट, साफा, कंबल, एक जोड़ी खड़ाऊं और चश्मा उनके व्यक्तित्व की गवाही देने लगा. लंबी दूरियां पैदल तय करना उन्हें सुहाता था. उन्होंने जीवन के अधिकांश वर्ष हिमाचल के धर्मशाला और पठानकोट के आश्रमों में साधना व् अपने भक्तो के साथ बिताए।

पंडित गदाधर अंतकाल के परिवार में उनके तीन पुत्र हैं: सर्वश्री गिरिश, श्री रमेश, और श्री सुरेश। पहले पठानकोट में, शेष दो दिल्ली एनसीआर में। अंतिम दौर ( २८ अगस्त २००८ तक ) में उनका अधिकांश समय कनिष्ठ पुत्र श्री सुरेश के साथ बीता। उनके अनेक शिष्य व परिजन उनके निर्भीक, संयत आचरण और ज्ञान का गुणगान आज भी करते हैं।

हम सभी पं गदाधर जी की स्मृति में उन्हें प्रणाम व् पुष्पांजलि अर्पित करते है.

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( यह संक्षिप्त विवरण *श्री हरीश बड़थ्वाल* भाई साहब जी व् बाद में उनके पुत्र श्री सुरेश जी द्वारा जानकारी पर आधारित है. - अन्य जानकारी मिलने पर ब्लॉग में जोड़ दूंगा )

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

२९ अप्रैल २०२१


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