Flying bat in a marquee
Barthwal's Around the World

> आशा है आपको यहां आ कर सुखद अनुभव हुआ होगा

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

हरीश बड़थ्वाल - एक परिचय


हरीश बड़थ्वाल - एक परिचय 

बचपन से लेकर जब तक मैं भारत में था तो कई बड़थ्वाल लोगों से परिचय मेरा रहा. अपने सैंज, सिराई, जोली (हमारे गांव के आसपास) के अलावा जो गांव उस वक्त मुझे मालूम थे, वे थे: पाली तल्ली, बडेथ, बुडोली, खंड और क्यार. कारण मेरे पिताजी का उस गांव के लोगो से किसी न किसी प्रकार का सम्बन्ध. उनमें से एक गांव "खंड"  (देवप्रयाग के निकट, कांडी, दाबड़, अमोला से घिरे, पौड़ी जनपद में). खंड से स्व. तीर्थानंद बड़थ्वाल ताऊ जी का पिताजी से प्रेम व अपनत्व ही आज उनकी याद उनके चेहरे को जस का तस मेरी आंखों में बसाये हुए है. आज कई बरसों बाद आज मुझे फेसबुक व इस समूह के जरिये उन्हें याद करने का मौका मिल रहा है. उनकी स्मृति को प्रणाम करता हूँ. याद का कारण कि यहां तीर्थानन्द ताऊ जी के सुपुत्र श्री हरीश बड़थ्वाल भाई साहब' से मिलना हुआ कई वर्षों बाद. तो आइये आपकी मुलाकात हरीश भाई साहब से करवा दी जाए क्योंकि लेखन - ब्लागर (हिंदी व अंग्रेजी) जगत में यह नाम प्रमुखता से लिया जाता है और लोग इन्हें शौक से पढ़ते हैं. 

हरीश भाई जी का जन्म खंड में ही हुआ. लिखने का शौक उन्हें अपने पिताजी स्व. तीर्थानन्द जी से जैसे विरासत में मिला हो. ताऊ जी ने साधारण आय होने पर भी सभी बच्चों को नौकरी तलाशने के बदले जीवन को संस्कारों, निष्ठाओं और मूल्यों से संवारने, निखारने की प्रेरणा दी - घर में सुख-सुविधाओं से समझौता भले ही हो जाता किंतु पढ़ाई के खर्चों में उनका हाथ नहीं भिंचता था. परिवार में छोटा भाई जीएसआई से निदेशक बतौर सेवानिवृत्त हुए, तीन बहनों में दो (दिवंगत) क्रमशः दिल्ली शिक्षा निदेशालय से प्रिंसीपल और एयर फोर्स स्कूल से वरिष्ठ अध्यापक रहीं. तीसरी एमिटी इंटरनेशलन नॉएडा में वरिष्ठ अध्यापिका हैं. बेटी सिलोगी और बेटे उत्कृष्ट दोनों में स्नातकोत्तर शिक्षा से बढ़ कर निरंतर पढ़ने-सीखने की उत्कंठा है. हरीश भाई साहब की धर्मपत्नी नीलम जी अध्यापिका हैं.

हरीश भाई जी ने दिल्ली, कोलकाता, भोपाल, करनाल शहरों में अनेक सरकारी, अर्ध-सरकारी व निजी संगठनों के जिम्मेदाराना संपादकीय पदों पर करीब 40 वर्षो तक कार्य किया. देहरादून के दैनिक (अंग्रेजी) टैब्लॉयड में दो वर्ष तक तथा दिल्ली के (हिंदी) दैनिक वीर अर्जुन में छह वर्ष तक रविवारी कॉलम लिखे. राष्ट्र स्तरीय हिंदी-अंग्रेजी अखवारों में उनके 700 से अधिक आलेख अध्यात्म, बेहतर जीवन, स्वास्थ्य, व्यंग्य आदि विषयों पर प्रकाशित हो चुके हैं. 

उनके कार्य क्षेत्र पर नज़र डाले तो:
  • मैसर्स कुटीर उद्योग समाचार, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली;
  • सेन्ट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग (ICAR), भोपाल (मध्य प्रदेश); सेन्ट्रल सॉइल सेलिनिटी रिसर्च इंस्टिट्यूट (ICAR), करनाल (हरियाणा);
  • डाइरेक्टोरेट ऑफ़ एडल्ट एजूकेशन, शिक्षा विभाग, भारत सरकार, दिल्ली  
  • एंथ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया, संस्कृति विभाग, भारत सरकार, कोलकत्ता (पश्चिम बंगाल);
  • नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक कोऑपरेशन एंड चाइल्ड डेवेलपमेंट, नई दिल्ली.

संपादन 
  • SAIL न्यूज; (आईटीसी का) 'पुकार';
  • इन्डियन हार्ट जरनल;
  • नर्सिंग जरनल आफ इण्डिया;
  • इनसाईक्लोपिडिया ऑफ़ मेनेजमेंट एंड इकोनोमिक साइंसिंज़.

अखबारों में
अंग्रेजी - हिंदुस्तान टाइम्स, डैक्कन हेराल्ड, द न्यू इन्डियन एक्सप्रेस, दि ट्रिब्यून, ओड़िसा पोस्ट, हंस द इंडिया, दि हितवाद, असम ट्रिब्यून, इकोनोमिक्स टाइम्स, द पाईनियर, पैट्रियट, नेशनल हेरल्ड.

हिंदी - नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक ट्रिब्यून, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक विश्वमित्रा, सन्मार्ग, डेली मिलाप इत्यादि.

ब्लंटस्पीकरडाटकाम (www.bluntspeaker.com ) नाम से उनका (हिंदी-अंग्रेजी मिश्रित) ब्लॉग है. सामयिक विषयों पर उनकी स्पष्टता व ज्ञान, उनके लेखन को एक अलग श्रेणी में खड़ा करते हैं.  जब आप इस ब्लॉग पर जायेंगे तो आप उनके विस्तृत लेखन, विषय पर उनकी पकड़ और बेबाक राय से परिचित होंगे. 

हरीश बड़थ्वाल भाई जी पर हम सभी को गर्व है और उन्हें शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं.  

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

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आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

श्री गदाधर बड़थ्वाल जी - एक परिचय


(३१ दिसम्बर १९१५ - २८ अगस्त २००८ )

(३१ दिसम्बर १९१५ - २८ अगस्त २००८ )

उत्तराखंड के पौड़ी जिले  में कंडोलिया के निकट 'बुडोली' गाँव में ३१ दिसम्बर १९१५ को जन्मे श्री गदाधर बड़थ्वाल जी साधु, सात्त्विक, पूर्णतः आध्यात्मिक वृत्ति के मित्भुक्, सहज और नेक व्यक्ति थे.

श्री गदाधर जी के माता-पिता अल्पायु में चल बसे. उनकी फूफू ने उनका लालन-पालन किया. समय उनके साथ न था और जल्द ही फूफू भी उन्हें छोड़कर चल बसीं. गरीबी इतनी थी कि संस्कार के लिए साधन न होने पर श्रीनगर के निकट गंगा में ही उन्हें विसर्जित करना पड़ा.

वे बाल्यकाल से कर्मठ, जुझारू व खुद्दार थे। इसका अंदाजा इस एक घटना से लगाया जा सकता है. जब गांव में पेयजल टैंक की मरम्मत के लिए सीमेंट आदि मंगवाने के लिए दुगड्डा जाने को कोई तैयार नहीं था तो वे अकेले ही (करीब 25 मील एक ओर) पैदल चल पड़े. उन दिनों यही चलन था, और रात तक लौट भी आए. इस साहसिक कार्य के लिए प्रशासन ने उन्हें टैंक चालू होने के समारोह में शील्ड से सम्मानित किया था.

आरंभिक शिक्षा से वंचित श्री गदाधर ने अपने जुझारू व्यक्तित्व व् कुछ करने के हौसले से ज्योतिष का अनौपचारिक किंतु प्रकांड ज्ञान अर्जित कर ख्याति पाई. जन्मपत्री की सटीक विवेचना तथा भविष्यवाणियां सही उतरने पर उनके अनेक शिष्य और भक्त हो गए थे.

करीब ३५ वर्ष की आयु में, उच्च चरित्र के प0 गदाधर ने अन्न को तिलांजलि दे दी. उसके पश्चात् उनका अतिसीमित दैनिक आहार सिर्फ दो-ढ़ाई सौ ग्राम उबली पालक या अन्य पत्तेदार सब्जी, थोड़ा दूध या कोई एक फल ही रहा. अपने जीवन काल मे कभी भी औषधि का प्रयोग नहीं किया था, यहाँ तक कि सर्प दंश के बावजूद भी वह स्वस्थ रहे. इसका एक मात्र कारण उनका ४२ साल तक नमक़ का सेवन न करना था.

अंतकाल तक स्वस्थ रहना पोषण विज्ञानियों के लिए अवश्य ही कौतूहल का विषय होगा. उनकी आवश्यकताएं अंत तक नाम मात्र ही थीं. धोती, दो जूट के लंगोट, साफा, कंबल, एक जोड़ी खड़ाऊं और चश्मा उनके व्यक्तित्व की गवाही देने लगा. लंबी दूरियां पैदल तय करना उन्हें सुहाता था. उन्होंने जीवन के अधिकांश वर्ष हिमाचल के धर्मशाला और पठानकोट के आश्रमों में साधना व् अपने भक्तो के साथ बिताए।

पंडित गदाधर अंतकाल के परिवार में उनके तीन पुत्र हैं: सर्वश्री गिरिश, श्री रमेश, और श्री सुरेश। पहले पठानकोट में, शेष दो दिल्ली एनसीआर में। अंतिम दौर ( २८ अगस्त २००८ तक ) में उनका अधिकांश समय कनिष्ठ पुत्र श्री सुरेश के साथ बीता। उनके अनेक शिष्य व परिजन उनके निर्भीक, संयत आचरण और ज्ञान का गुणगान आज भी करते हैं।

हम सभी पं गदाधर जी की स्मृति में उन्हें प्रणाम व् पुष्पांजलि अर्पित करते है.

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( यह संक्षिप्त विवरण *श्री हरीश बड़थ्वाल* भाई साहब जी व् बाद में उनके पुत्र श्री सुरेश जी द्वारा जानकारी पर आधारित है. - अन्य जानकारी मिलने पर ब्लॉग में जोड़ दूंगा )

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

२९ अप्रैल २०२१


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शनिवार, 24 अप्रैल 2021

रोमिल बड़थ्वाल – एक परिचय


लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल बड़थ्वाल (सेवानिवृत्त)



हिंदी, साहित्य, संस्कृति और धर्मनिष्ठा से जुड़े कुछ बड़थ्वालो से आपका परिचय करवाया. आज मुझे एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में जानने का अवसर मिला जो देश की रक्षा से जुड़ते हुए पर्वतारोहण ब एथलीट की दुनियां में आज एक मिसाल है. उत्तराखंड के ग्राम ‘खोला’ पट्टी कंडवालस्यूं के श्री बुद्धि बल्लभ के सुपुत्र लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल बड़थ्वाल (सेवानिवृत्त) अपने फौजी पृष्ठभूमि, पारंगत क्षेत्र और व्यवसाय में किसी परिचय के मोहताज नहीं. लेकिन हम सबके लिए इस साहसी व्यक्तित्व को जानना और भी जरुरी हो जाता है कि वे बड़थ्वाल है.

13 पर्वतारोहण अभियान को नेतृत्व प्रदान करने वाले रोमिल बड़थ्वाल ने २२ वर्षो तक सेना में अपना योगदान दिया. अपने पर्वतारोहण अभियान का अंत उन्होंने मई २०१९ में माउन्ट एवरेस्ट पर फतह के साथ पूरा किया.

रोमिल बड़थ्वाल एक ट्रेकर, एक एंड्योरेंस-रनर और सुपररेंडोन्यूर  ब्रेवेट्स (साइकिलिंग) है. वे व्हाईट वाटर राफ्टिंग कोर्स के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ है. विज्ञापन खेलो में भी रोमिल ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. बजी जम्पिंग, कयाकिंग, पैरामोटरिंग, पैरासेलिंग, पैराग्लाइडिंग सहित साहसिक खेलों में सक्रिय रूप से प्रतिभागिता की है.

२ अक्टूबर १९७६ में जन्मे रोमिल 18 साल की उम्र में भारतीय सेना में भरती हुए. वे आज की अपनी सारी सफलताओं और माउन्ट एवरेस्ट के पर्वतारोहण अभियान नेतृत्व के पीछे भी सेना को श्रेय देते है. वे आज भारत के शीर्ष पर्वतारोहण कम्पनी “बूट्स & क्रेम्पोन्स” (B&C), के संस्थापक है

रोमिल राष्ट्र रक्षा अकादमी पुणे से स्नातक है. शैक्षणिक प्रदर्शन के दौरान वे कई पर्वतारोहण अभियान में असफल रहे, पेराट्रूपर बनना चाहते थे पर असफल रहे. लेकिन उन्होंने हिम्मत व् हौसला बनाये रखा. एम् टेक ( आई आई टी खडगपुर ) के दौरान उन्होंने खुद को पहचाना, कड़ी मेहनत से स्वयं को तैयार किया. अपने आत्मविश्वास को बनाये रखा. उनके पत्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों व् मेग्जींस में प्रकाशित भी हुए. इसी दौरान  रोमिल ने लंबी दूरी की दौड़, 10 किमी, हाफ मैराथन, मैराथन, साइकिलिंग सुपररेंडोन्यूर , हाफ आयरनमैन, राफ्टिंग इत्यादि में महारत हासिल की.

उपलब्धियां:

·         रोमिल बड़थ्वाल ने 2017 में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित बोस्टन मैराथन में भागीदारी की.

·         ला अल्ट्रा, सुमुर से लेह तक वाया खारदुंगला पास (3500 मीटर की ऊँचाई पर) से सबसे कठिन उच्च ऊंचाई वाला अल्ट्रामैराथन है। रोमिल ने इसमें 111 किमी दौड़ के लिए गैर-लद्दाखी श्रेणी में टीम कप्तान और रिकॉर्ड धारक हैं।

·        नई दिल्ली स्टेडियम रन में 185 किमी की दूरी तय की

रोमिल पर्वतारोहण अभियानों में एक टीम लीडर के रूप में,  टीम के सदस्यों की सुरक्षा के नाते, पर्यावरण सरंक्षण, राष्ट्र के सम्मान को स्वयं के हितों से पहले रखते है। रोमिल कहते है कि माउंट एवरेस्ट के लिए, अपने मिशन के लिए मैं इस हद तक तैयार था कि अगर मैं उंगलियां या पैर की उंगलियों को खो देता तो भी परवाह न करता. रोमिल आज अपनी कम्पनी के द्वारा अनेको पर्वतारोहण के इच्छुको को ट्रेनिंग देते व् अभियान चलाते हैं. वे अफ्रीका, अर्जेंटीना, रूस, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल और भारत में कई अभियान चलाते हैं।

लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल, मैरून बेरेट वाला पैराट्रूपर, ओपी विजय और कारगिल का हिस्सा थे और कई वर्षों बाद  उन्हें 2019 में साहसिक खेलों में उत्कृष्ट योगदान के लिए 'द ईएमई ब्लू अवार्ड' से अलंकृत किया गया।

दो पुत्रियों ( १० वीं व् ५ वीं की छात्रा) के पिता रोमिल आई आई एम्, लखनऊ से मेनेजमेंट स्नातक है. एक महान प्रेरक वक्ता ( लगभग 100+ सभाए) और कई फिटनेस के लिए एक रोल मॉडल भी है. वे अपने माता पिता के साथ द्वारिका दिल्ली में रहते है. आजकल वे  नेपाल में पर्वतारोहण अभियान के साथ हैं.

हमारी ओर से रोमिल बड़थ्वाल व् परिवार को ढेर सारी शुभकामनायें. 


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रविवार, 18 अप्रैल 2021

तनहा अजमेरी - गुमनाम शायर ( एक परिचय )

संजय बड़थ्वाल - तनहा अजमेरी 


बड़थ्वाल – एक शब्द जो मुझे सदा उत्साहित करता है. यही कारण है कि मुझे हर उस व्यक्तित्व से जुड़ना अच्छा लगता है जिसके साथ बड़थ्वाल जुड़ा है क्योंकि वह मेरी जड़ो को मजबूती प्रदान करता है. जब मैं २००७ में बड़थ्वाल बंधुओं की तलाश में था उस वक्त लिखने का शौक भी था और कई लेखको, शायरों व् कवियों को पढता भी था. तभी एक नाम जो मेरी नजरो से गुजरा - तनहा अजमेरी. एक बेहतरीन शायर और शब्दों के जादूगर तनहा अजमेरी को पढ़ा तो जानने का प्रयास किया. मेरी ख़ुशी की सीमा नहीं रही जब मैंने पाया कि उस शख्स का नाम संजय बड़थ्वाल है. आप भी चौंक गए होंगे न ? खैर फिर उनसे परिचय बढाया बड़थ्वाल (Barthwal’s Around the World) समूह में जोड़ा. मेरा तो परिचय है ही उनसे, क्या आप जानते हैं? आइये मिलिए संजय बड़थ्वाल जी उर्फ़ तनहा अजमेरी जी से - कुछ मेरी कलम से कुछ उनकी जुबानी .. 


ज़िन्दगी सिर्फ वो ही नहीं जिसकी हर वक़्त चर्चा होती रहे
 “तनहा” किसी गोशे में सुकून से खुश रहना भी है ज़िन्दगी 
(गोशे=कोने) 

वैसे तो संजय जी कहते है कि मेरे बारे में जानने लायक, सचमुच, कुछ भी नहीं है। जो थोडा बहुत लिख लेता हूँ, वही मेरा परिचय बनकर रह गया है। लेकिन मैंने जाना है जो जाना है उसकी शुरुआत करता हूँ सन १९३९ की बात है जब पाली तल्ली से संजय जी के दादा जी स्व. मेजर मनीराम बड़थ्वाल जी कोटद्वार आ गए परिवार के साथ. मेजर मनीराम जी ब्रिटिश आर्मी में गढ़वाल के पहले चुने हुए आफिसर में से एक थे. नजीबाबाद रोड पर बडथ्वाल कोलोनी उनके नाम पर ही है. परिवार के लालन पालन हेतु संजय जी के ताउजी, चाचा जी व् पिताजी देश के विभिन स्थान पर रहने लगे. यह उत्तराखंड में पलायन के शुरआती दौर की बात होगी. संजय जी का मानना भी है कि यही वक्त था की हम अपनी जड़ो और पहाड़ से दूर हो गए या कहे - कट गए. 

संजय जी के एक ताऊ जी स्व मेजर सत्य प्रसाद बड़थ्वाल (शहीद १९६२ भारत चाइना वार) और दूसरे ताऊ जी श्री जगदम्बा प्रसाद बड़थ्वाल (एक्स जनरल मेनेजर, केनेडियन इंस्टीटयूट आफ बिजिनेस, ओंटारियो) संजय जी के पिताजी श्री शांति प्रसाद बड़थ्वाल जी अजमेर (राजस्थान) आ गए. वे कहते है कि पहाड़ से रिश्ता क्या टूटा की मरुस्थल से जा मिले. 

संजय जी के पिताजी स्व श्री नरेश ( शांति प्रसाद) सीआर पी ऍफ़ में कमान्डेंट की पोस्ट से रिटायर्ड हुए. संजय जी की दो छोटी बहिने है संगीता बड़थ्वाल खंडूड़ी ( स्कूल प्रिंसिपल, शिलोंग) और दीपाली बड़थ्वाल काला ( डायरेक्टर आफ एडुकेशन, स्ट्रेयर्ष यूनिवर्सिटी यूएसए). 

संजय बड़थ्वाल उर्फ़ तनहा अजमेरी का जन्म ३१ अक्टूबर १९६७ अजमेर में हुआ. प्रारम्भिक शिक्षा उन्होंने यहीं से प्राप्त की. वहीं पर शायरी के बीज चुन अल्फ़ाज़ के तमाम शजर (पेड़) लगाने का सिलसिला शुरु हुआ। अजमेर में पैदा होने कारण ही अपने उपनाम में उन्होंने ‘अजमेरी’ शब्द को जोड़ा. संजय जी की उच्च शिक्षा दिल्ली दिल्ली में सेंट स्टीफन कॉलेज में हुई. तनहा अजमेरी मानते है कि उन्हें नुकसान यह हुआ कि इन ५ वर्षों के दौरान वे धरातल से और दूर हो गए और आलम यह हुआ की न तो वे अंग्रेज बन पाए, न हिन्दुस्तानी रह गए. देश के रहे न परदेश के तो जीवन के भटकाव को ही जीवन बना लिया. कभी इधर कभी उधर, एक बहके हुए परिंदे कि मानिंद शजर से शजर। वे लिखते हैं 

अपनी धुन में जाने किधर से किधर निकल गए 
हम ऐसे मुसाफिर है जो मंजिलों को भी छल गए 

उन्हें नौकरियां मिलती रही और वे उन्हें छोड़ते रहे. कह सकते हैं कि किसी तरह उनका काम चलता रहा और ज़िन्दगी तमाम होती रही। तनहा अजमेरी जी कहना है कि एक चीज़ जो हमेशा साथ रही वो थी उनकी शायरी। इस पर वो कहते हैं कि ‘तनहा’ घूमते - घूमते हुजूम से अब ताल मेल बिठाना भूल गया हूं और वास्तविक व्यावहारिक गुफ्तगू से बिल्कुल परे हो गया हूं। 

संजय जी बताते है कि जहां तक कार्य का ताल्लुक है बहुत कोशिश की। सरकारी अफसर भी रहा, उकता गया। रोटी जब समस्या बनी तो कई प्राइवेट जॉब्स किए। TIMES OF INDIA, फिर इस्तीफा। अपने खुद के अखबार चलाए - "उत्तराखंड सवेरा" और "VOICE FROM HILLS". उच्च कोटि का काम करने की कोशिश की पर चाटुकारिता न जानने के अभाव के चलते विज्ञापन न मिले और निम्न कोटि के अखबार रसूखदार लोगों के सियासती CONNCETION के आगे अपने अखबार तो पटखनी खा गए। 

 संजय जी का स्वतंत्र रूप से लिखना जारी रहा - स्क्रिप्ट, बोल, कहानियाँ इत्यादि. मगर अंजाम वही- ढाक के तीन पात। मुंबई फिल्म उद्दयोग में जीरो कनेक्शन होने के कारण बात उनकी बात वहां भी नहीं बनी. वे कहते है कि ईर्ष्यालु लोगों ने आगे न बढ़ने दिया और मैं TALENT WITHOUT OPPORTUNITY की मिसाल बनकर रह गया। सो अब घर बैठे - बैठे ही अल्फ़ाज़ की माला पिरों रहा हूं। कहते हैं जंगल में मोर नाचा तो किसने देखा। परवाह नहीं। मोर का मज़ा तो नृत्य में है। मेरे तो यही हाल है... 

ना जाने किसी ओर निगाहें किये बैठा रहा है ज़माना
मेरी तो महज कुदरत के नज़रों में ही ज़िन्दगी रही 
होती होंगी औरों की इबादत देरों - हरम में तनहा 
मेरी तो फकत आशिक़ी ही ताउम्र मेरी बंदगी रही 

संजय बड़थ्वाल जी ने इस दौरान कुछ किताबें लिखी हैं – 
 - दायरों से बाहर(Poems), 
 - अफसाना बयानी(Short Stories), 
 - समंदर (Ghazals), 
-  गीत (Music and lyrics), 
 - अक्कड़ - बक्कड (बच्चों की कविताएं), 
 - हॉलीडे रीडिंग (अंग्रेज़ी में बच्चों के लिए कहानियां), 
 - द लास्ट मैन स्टैंडिंग (पर्सनैलिटी डेवलपमेंट बुक)। 

आप सभी लोग उनके ब्लॉग में उनकी शायरियो का लुत्फ़ ले सकते हैं.
http://tanhaai-pursukun.blogspot.com/?m=1 

संजय जी अपनी जड़ो के साथ जुडा रहना चाहते हैं वे कहते है कि बडथ्वाल नाम से तो प्रेम है पर असमंजस में हूं कि क्या वाकई में इस समूह से जुडा हर शखस संजीदा है भी या नहीं या फिर लोग सिर्फ तफरीह के लिए जुड़ रहे है सिर्फ "GOOD MORNING और GOOD NIGHT" बोलने के लिए... वे एक प्रश्न बड़ी संजीदगी से पूछते है की “क्या इनके जिस्म में शिद्दत से वो लहू बह रहा है जो वाकई में उन्हें बड़थ्वाल होने पर एक नई ऊर्जा से भरता हो ? यह प्रश्न हम सबके लिए भी है और हम ही उत्तर भी है उनके प्रश्नों का. 

वर्तमान में संजय जी अपनी माताजी के साथ देहरादून में रहते है. 

आप सभी के साथ मैं उन्हें उनके उज्जवल भविष्य की कामना सहित शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ.

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
 भारत १८/४/२१



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हमारा उद्देश्य

When we dream alone it is only a dream, but when many dream together it is the beginning of a new reality.