राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट.... राम भक्त और भक्ति की कई मिसाले इतिहार
या धार्मिक ग्रंथो में दर्ज है, लेकिन इस जीवन काल में एक ऐसी ही विभूति से परिचय
होना आश्चर्यजनक तो है ही लेकिन स्वयं में एक प्रेरणा एक दर्शन होना भक्ति का
साक्षात प्रभु दर्शन करने जैसा होगा. जी हाँ कुछ समय पहले मुझे इसकी जानकारी
स्नेही श्री अनिल बड़थ्वाल जी से मिली. और आज उस राम भक्त श्री ललिता प्रसाद
बड़थ्वाल जी का उल्लेख करते हुए और आप सब से परिचय कराते हुए हर्ष के साथ सुखद
अनुभूति हो रही है. उन्होंने राम नाम को सवा सो करोड़ बार लिखा. ‘राम’ नाम में उभरे
दो अक्षरों से सारी रामायण को रच डाला. वे आज भी ‘सीता राम’ शब्द को लिखने में
जुटे है. जिसे अब तक वो पौने दो करोड़ बार लिख चुके है. आइये मिलते है इस रामभक्त
से और शुरुआत करते है उनके संक्षिप्त परिचय से.
श्री ललिता प्रसाद बड़थ्वाल जी का जन्म उत्तराखंड के गाँव बडेथ, पट्टी ढांगू,
हिला पौड़ी गढ़वाल में हुआ. बचपन गरीबी के वातावरण में बीता और हाई स्कूल तक शिक्षा
ग्रहण की और फिर जीविका हेतू रेलवे के चतुर्थ श्रेणी में भरती होकर कालका [हरियाणा]
आ गए. साथ ही विद्याध्ययन भी करते रहे. ज्योतिष और धर्म के प्रति उनकी आस्था ने,
उनकी लगन ने उन्हें रत्न-भूषन-प्रभाकर और विद्यावाचस्पति की उपाधि अर्जित की. २ वर्ष
तक वे कालका में गढ़वाल सभा के महा सचिव रहे. सभा के नए प्रतिनधिमंडल में उन्हें
प्रचार मंत्री के रूप में कार्य करने का मौका मिला. इसी दौरान उन्होंने लिपिक की
परीक्षा पास की, और रेलवे में ही उनका स्थान्तरण भटिंडा [पंजाब] में हो गे. भटिंडा
में श्री ललिता प्रसाद जी ने गढ़वाल भ्रातिमंडल की स्थापना की और महामंत्री के पद
पर रहे. १९६० में उनका स्थान्तरण हुआ और वे गाजियाबाद आ गए. यहाँ भी कई वर्षो तक
वे गढ़वाल सभा के सचिव रहे. पदोन्नति हुई और वे सन १९६८ में दिल्ली आ गये, रेलवे के प्रधान कार्यलय में वे सीनियर
कलर्क, हेड कलर्क एवं सुपरिटेंडेंट की हैसियत से कार्य करते हुए सं १९९१ में वे
सेवानिवृत हुए.
उनका कहना है उनके पिता द्वारा ही उन्हें राम नाम की सीख मिली, उनके पिता
रामायण बांचते हुये ही इस संसार से विदा हुए. जब वे कार्य हेतू नित्य गाजियाबाद से नई दिल्ली
जाते थे तो उसी रेल के एक डिब्बे में रामायण सत्संग होता था और उनका इस सत्संग से
जुड़ना नियति कहा जा सकता है. बाल्यकाल से ही राम के नाम के साथ जुड़ना उनके जीवन
में उस भक्ति को चरितार्थ करना ही था. वे नित्यरामायण सत्संग से जुड़े, एक वर्ष तक
उपाध्यक्ष के रूप में संस्था में कार्य किया और ५ वर्षो तक इसी संस्था के अध्यक्ष
के तौर पर राम नाम का प्रसार करते रहे. सन १९८\७ में एक धार्मिक सम्मलेन में श्री
बड़थ्वाल जी का मिलना हुआ अयोध्या के प्रसिद्ध संत और राम जन्म भूमि के अध्यक्ष
श्री नृत्य गोपालदास जी से. उन्ही से श्री ललिता प्रसाद जी को श्री राम नाम\ लेखन
की प्रेरणा मिली. दो अक्षरों ‘राम’ नाम से
उन्होंने रामायण के हर श्लोक का सृजन किया और सम्पूर्ण रामायण को उन्होंने राममय
बना दिया. श्री बड़थ्वाल जी के गुरु श्री रामानान्दाचार्य के चित्रकूट आश्रम के मानस
मंदिर में यह रामायण आज भी भक्तो के दर्शनार्थ रखी हुई है. नौकरी के दौरान सहित [
१९८७ – १९९९] १२ वर्षो तक उन्होंने सव करोड़ बार राम नाम लिखने पर, उनके उत्कृष्ट
और राम भक्ति से लबरेज सृजन के लिए उन्हें अंतराष्ट्रीय राम नाम बैंक, अयोध्या के
संस्थापक श्री न्रित्यागोपल्दास ने स्वर्णपदक से सम्मानित किया.
रामायण की प्रति भेंट करते हुए |
गजियाब्द के जगद्गुरु स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी ने तुलसीमंडल संस्था की
स्थापना की. श्री बडथ्वाल जी इस संस्था के उपाध्यक्ष भी है. मासिक पत्रिका ‘श्री
तुल्सीपाठ सौरभ’ के वे १५ वर्षो तक प्रबंध संपादक रहे. अब वे सांसारिक क्रियाकलापों से मुक्त होकर ‘सीतराम’
लिखने में सलंगन है. अब तक जिसे वे पोने डॉ करोड़ बार लिख चुके है. उनका कहना है कि
श्री राम ही उनके डॉक्टर भी है उनका पावन नाम उनके जीवन में परम औषध का कार्य करती
है. उनका एक पुत्र इंजिनियर है एवं दूसरा पुत्र जनरल मेनेजर. लेकिन वे राम नाम के
साथ स्वयं को जोड़े हुए है. रामायण का ये श्लोक उनकी भक्ति के उद्देश्य को दर्शाता
है
नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥
अर्थात ऐसे कराल (कलियुग के) काल में तो नाम ही कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संसार के सब जंजालों को नाश कर देने वाला है। कलियुग में यह राम नाम मनोवांछित फल देने वाला है, परलोक का परम हितैषी और इस लोक का माता-पिता है.
हर अक्षर में राम - राम शब्द को जोड़ कर पूरी रामचरित्र मानस को
अपनी हस्तलिपि द्वारा पूर्ण करना असाधरण कार्य है. श्री बड़थ्वाल जी ने अधिकांश जीवन साहित्य और धर्म के सेवा में लगा दिया है.
इस अद्वितीय एवं महान कार्य को पूर्ण करने में उनकी वर्षो की साधना और लगन है. इस
महान रचना के रचयिता और
राम भक्त को हम प्रणाम करते है. प्रभु से उनकी लम्बी आयु और स्वस्थता की
कामना करते है.
आपका सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
आज पिताजी हमारे बीच नहीं हैं। आज उनकी दिवित्य पुण्यतिथि है। पिताजी ने अपना तन, मन, धन श्री राम के चरणों में समर्पित किया। ईश्वर से प्रार्थना है कि हमे इतनी शक्ति देना की हम सब पिताजी के दिखाए रास्ते पर चलें तथा उनके आदर्शों का अनुकरण कर सकें।
जवाब देंहटाएंपिताजी की स्मृति को नमन व् पुष्पांजलि
जवाब देंहटाएंशत शत नमन
जवाब देंहटाएं🙏❤🙏
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