तिरंगा हमारी आन है बान है
हर हिंदुस्तानी की ये शान है
शहीदों की कुर्बानी की अलग कहानी
कुछ गोली खाकर शहीद कहलाये
कुछ फ़ासी के फ़ंदे पर झूल गये
कुछ ने देश के लिये किया समर्पण
कुछ ने किया सब कुछ अपना अर्पण
आज हम हर माने में स्वतंत्र है
लेकिन फ़िर भी बिगड़े सारे तंत्र है
गरीबी अमीरी की खाई बढती जा रही
आंतक की बू हर दिन फैल रही
राजनीति भी खूनी - खेल खेल रही
आजादी के जशन हम हर साल मनाते है
लेकिन मानवता को हर पल भूलते जा रहे है
देश और लोग उन्नति की ओर अग्रसर है
आम जिदगी फ़िर भी इससे बेअसर है
ढूँढते रहते ये सब किसका कसूर है?
आओ आज तिरंगा फ़िर लहराये
अमीरी गरीबी का ये भेद मिटाये
राजनीति से हटकर प्रेम फैलाये
जाति - भाषा का ये जाल हटाये
खुद को सच्चा हिन्दुस्तानी कहलाये।
- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल
(पिछले साल लिखी हुई एक रचना)
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